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अत्यंत खोजपूर्ण महाप्रबंध लिखकरआगरा विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। समाजसेवी एवं कुशल प्रवक्ता हैं। उत्कृष्ट चिंतक एवं गंभीर लेखक हैं। देहली में शासकीय विद्यालय के प्राचार्य रहे। जैन विश्वभारती लाडनूं (राजस्थान) में शोध अधिकारी के पद पर रहकर अध्ययन और अध्यापन किया। साहू श्रेयांस प्रसाद की प्रेरणा और प्रोत्साहन से भारतीय ज्ञानीठ दिल्ली में 10 वर्ष तक शोध-अधिकारी के पद पर कार्य किया। आपके शोध-प्रबन्ध का प्रकाशन भी प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्था द्वारा 1978 में हुआ जिसकी जैन और जैनेतर विद्वानों भूरि-भूरि प्रशंसा की। शोध अधिकारी के रूप में आपके दो दर्जन से ऊपर शोध-पत्र प्रकाशित हुए। पं.दौलतराम कृत 'छ:ढाला' नामक विख्यात ग्रंथ का आपने विस्तृत टीका सहित 1993 में अंग्रेजी में अनुवाद किया है जिसकी भूमिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति डा. डी.एस. कोठारी ने लिखी है। इसके अतिरिक्त आपके द्वारा लिखित और अनुवादित कई ग्रंथ प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं।
डा. साहब की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल से शुरू हुई। स्याद्वाद विद्यालय, वाराणसी में संस्कृत भाषा, व्याकरण एवं धर्मशास्त्र का अध्ययन किया। गवर्नमेण्ट कालेज, अजमेर से बी.ए., सेंट जोंस कालेज, आगरा से एम.ए. गणित, आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. दर्शन शास्त्र; राजपूत कालेज आगरा से एल.टी. और अन्त में आगरा कालेज, आगरा के दर्शन एवं मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डा. ब्रजगोपाल तिवारी के मार्गदर्शन में आगरा विश्वविद्यालय से दर्शन विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसी मध्य काव्यतीर्थ एवं दिगम्बर जैन न्याय मध्यमा उत्तीर्ण की। दिगम्बर जैन परिषद् परीक्षा बोर्ड, दिल्ली से A.J.Ph., M.J.Ph. और F.J.Ph. की उपाधि परीक्षायें अंग्रेजी माध्यम से उत्तीर्ण की। बाद में कई वर्षों तक आप इसी परीक्षा बोर्ड के विभिन्न कोर्सी तथा शोध लेखों के परीक्षक भी रहे।
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास