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को स्वाध्याय करते थे। गुरुओं के परम भक्त थे । आबाज बहुत महीन थी। परन्तु वक्तृत्व बड़ा प्रभावशाली एवं समाधान कारक होता था । असंख्य शास्त्रीय प्रमाण कंठस्थ थे । अतः जिज्ञासु आपके पास बड़ी शान्ति का अनुभव करता था। इस युग में अखिल भारतीय स्तर के चोटी के विद्वान थे। सभी समाज में आपका सम्मान था । आपने गोम्मटसार तत्वार्थधिगम, महाभाष्य, अभिग्रन्थों की टीका की । रत्नकरंड श्रावकाचार की बहुत सुन्दर टीका लिख रहे थे, परन्तु असमय में निधन से अधूरी रह गई । जितनी प्रकाशित हो गई है अद्वितीय है। संस्कृत भाषा में कविता का भी अच्छा अभ्यास था ।
स्व. पं. गजाधरलालजी न्यायतीर्थ
आप स्वर्गीय पं. रामप्रसाद जी के लघुभ्राता थे। कलकत्ता में रहते थे । बहुत उच्च कोटि के विद्वान थे। घी का व्यापार करते थे, परन्तु जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था से लगाव होने के कारण तत्वार्थ राजवार्तिकी की टीका में आपने प्रमुख योगदान किया। अनेक ग्रन्थों की स्वतंत्र टीका भी की । प्रखर प्रतिभा के धनी थे ।
पंडित चन्द्रशेखरजी वैद्य
आगरा जिले में रेलवे स्टेशन टूंडला के पास जोंधरी स्थान है। श्री 105 एलक जानकीप्रसाद वहीं के निवासी थे। उनके गृहस्थ जीवन के सुपुत्र श्री नेकीराम जी अत्यंत धार्मिक एवं विद्वान पुरुष हुए हैं । उनका अधिकांश समय श्री रायबहादुर सेठ टीकमचन्द जी सोनी अजमेर के पुत्रों को पढ़ाने में बीता। श्री नेकीराम जी उन्हीं सोनी जी के मंदिर जी में शास्त्र प्रवचन भी करते थे ।
इन्हीं शास्त्री श्री नेकीराम जी के सुपुत्र चन्द्रशेखर जी हुए। आपका जन्म द्वितीय भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष षष्ठी भृगुवार वि. सं. 1974 को पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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