________________
मोकार मन्त्र और रंग विज्ञान / 99
प्रकार की आकृति को उत्पन्न करती है । प्रत्येक आकृति एक तत्त्व से बंधी हुई है और प्रत्येक तत्त्व कुछ निश्चित भावनाओं, इच्छाओं, विचारों और क्रियाओं से बंधा हुआ है ।
उदाहरण के लिए आप णं का उच्चारण करिए। किसी तत्त्व की जानकारी के लिए आप उसका अनुस्वार के साथ उच्चारण कीजिए । फिर अनुभव कीजिए कि वह आपको किधर ले जा रहा है। आपकी नाभि से एक ध्वनि उठती है वह आपको ब्रह्म रन्ध्र की ओर या मूलाधार की ओर या अनहत की ओर या नाभि की ओर ले जा रही है । इससे पता चलता है कि ण और म कहते ही हमारा विसर्जन होता है, हम किसी मे लीन होने लगते हैं । 'ण' नही अर्थात् अस्वीकृति या त्याग चेतना का द्योतक है और इसके (ण के साथ ही हम इस त्याग चेतना से भर जाते हैं । और पूरा 'नमो' बोलते ही हमारा समस्त अहकार विसर्जित हो जाता है । हम हल्के निर्विकार होकर आकाश की ओर उठते है । ण और म के मिलन से वही स्थिति होती है जो अग्नि और जल के मिश्रण से होती है । अग्नि के सम्पर्क से जल वाष्प बन जाता है अर्थात् ऊर्जा (Energy ) मे परिवर्तित हो जाता है।
प्रत्येक वर्ण और अक्षर के विश्लेषण मे रंग का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है । आकृति आएगी तो उसमें वस्तुए भी उभरेंगी ही । कान बन्द करने के बाद बिना वर्णों की ध्वनि जो हम सुनते हैं वह अनाहत कहलाती हैं । ध्वनि का विभिन्न चक्र से सम्बन्ध होता है । चक्रो का अर्थ है तत्त्व और तत्त्व का अर्थ है विभिन्न प्रकार के रंग और रंगो से प्रकाश प्रकट होता ही है । जो ध्वनि सीधी निकलती है उसका रंग अलग है और जो ध्वनि गुच्छ में से (चक्र या कमल मे से) निकलती है उसका रंग कुछ और ही होता है। आशय यह है कि ध्वनि चक्र से सम्बद्ध होकर शक्ति और ऊर्जा बदलती है ।
जर्मन ढा० अर्नेस्ट लाडनी और जेनी ने प्रयोग किये। उनके प्रयोगो से यह सिद्ध हो गया कि ध्वनि और आकृति का घनिष्ठ सम्बन्ध है। स्टील की पतली प्लेट पर बालू के कण फैलाए गये और वायलिन के स्वर बजाए गये तो पाया गया कि इन स्वरो के कारण बालू के कण विभिन्न आकारों को धारण करते हैं। डॉ० जेनी का प्रयोग ध्वनि और