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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान / 71 है। ध्यान की स्थिति मे यह स्थान कभी चक्र जैसा तो कभी दीपक की ज्योति जैसा प्रकाशमान दिखाई देता है। इसमें महत तत्त्व का वास माना जाता है। इसे तृतीय नेत्र भी कहते हैं। 7. सहस्रार चक्र-बड़े मस्तिष्क के अन्दर महाविवर नाम के महा छिद्र के ऊपर छोटी-सी पोल है। वही इसका निवास माना जाता है। इसे ब्रह्मरन्ध्र भी कहते हैं। __इस प्रकार योग शास्त्र की दृष्टि से जो विचार किया गया, उससे भी यही सिद्ध हुआ कि हमारा जीवन हमारे भीतर से ही उत्पन्न की गयी ऊर्जा से चलता है। श्वासोच्छवास के माध्यम से उसे अधिक गतिशील बनाते हैं। यही ऊर्जा ध्वनि और शब्दों में बदलती है । ध्वनि या शब्द उत्पन्न होने की प्रक्रिया में सबसे पहले ऊर्जा (Energy) सुषुम्ना से होती हुई मूलाधार को स्पर्श करती है, फिर वहा से एक प्रकम्पन का रूप लेती हई आगे बढती है। स्वाधिष्ठान चक्र से उसको और गति प्राप्त होती है। इसके बाद मणिपुर चक्र से अग्नि तत्व ग्रहण करती है और हृदय चक्र से टकराती है । यहा उसे वायुतत्त्व प्राप्त होता है। वायु तत्त्व के प्राप्त होते ही यह ध्वनि नाद बन जाती है । यह नाद कण्ठ स्थान (विशुद्धि चक्र) मे आकर, आकाश तत्त्व को प्राप्त करता है। आकाश तत्त्व से मिलने के बाद कण्ठ और ओष्ठ के बीच के अवयवों के सहयोग से यह नाद विभिन्न वर्गो एवं शब्दो के रूप में बाहर प्रकट होता है। चूकि यह नाद कण्ठ आदि अवयवों से टकराता है-आहत होता है इसलिए यह नाद आहत-नाद कहलाता है। जब यह नाद इन स्थानो से टकराये बिना सीधा ही ऊपर सहस्रार चक्र तब तक चला जाता है, तब यह नाद अनाहत नाद कहलाता है । जब कुडलिनी जागृत होती है अर्थात जब सम्पूर्ण शक्ति सभी प्रकार से जग जाती है, तब शब्द शक्ति भी पूर्ण रूप से जग जाती है। ऐसी जगी हुई शक्ति परम ईश्वर का कार्य करती है, इसलिए उसे शब्द ब्रह्म कहा गया है । ध्वनि अपनी यात्रा मे कभी इडा से सम्बन्धित होती है तो कभी पिगला से तो कभी सुषुम्ना से । इडा, पिंगला और सुषुम्ना से सम्बन्धित होने के कारण वर्गों की तीन प्रकार की शक्तिया मानी गयी हैं-चन्द्रशक्ति, सूर्य शक्ति तथा अग्नि शक्ति । इन्हीं को क्रमश उत्पन्न करने वाली, बनाये रखने वाली और ध्वस करने वाली (Creative power,
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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