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70 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
मूलाधार को प्रभावित करती है, कुछ स्वाधिष्ठान को, कुछ मणिपुर को, कुछ अनहत को, कुछ विशुद्ध को, कुछ आज्ञा चक्र को ओर कुछ सहस्रार की ।
अध्यात्म की पद्धति अन्तर्निरीक्षण है तो विज्ञान की पद्धति परीक्षण है । दोनो इस ब्रह्माण्ड के मूल तत्त्व की खोज में लगी हुई पद्धतियां है । योग शास्त्र की दृष्टि से आन्तरिक रचना
योग की दृष्टि से शरीर के भीतरी भागों मे सात चक्र है । इनकी सहायता से ध्वनि और आकृति को सरलता से समझा जा सकता है । ये सात चक्र इस प्रकार है: 1 मूलाधार चक्र, 2 स्वाधिष्ठान चक्र, 3 मणिपुर चक्र, 4 अनाहत चक्र, 5 विशुद्ध चक्र, 6 आज्ञा चक्र, 7 सहस्रार चक्र ।
1. मूलाधार चक्र - हमारे पृष्ठवंश का सबसे नीचे का भाग पुच्छास्थि है । उसमे थोडा-सा ऊपर बास की जड़ के समान एक नाड़ियों का पुज है । इसी को मूलाधार कहते है । यह कुडलिनी शक्ति का आधारभूत स्थान है । अत इसे मूलाधार कहते है । इसमे पृथ्वी तत्व की प्रधानता है ।
2. स्वाधिष्ठान - मूलाधार से लगभग चार अंगुल ऊपर मूत्राशय गर्भाशय के मध्य शुक्रकोश नाम की ग्रंथि है, वह इस चक्र का स्थान माना गया है। इसमे जल तत्त्व की प्रधानता मानी गयी है। कफ एव शुक्र जैसे जलीय विकारो से इसका विशेष सम्बन्ध है ।
3 मणिपुर चक्र - नाभि प्रदेश इसका स्थान माना गया है। इसमे अग्नि तत्व की प्रधानता है। इसे नाभि चक्र भी कहा जाता है ।
4. अनाहत चक्र - छाती के दोनो फफ्फुसो के मध्यवर्ती रक्ताशय नामक मासपिण्ड के भीतर इसका स्थान माना जाता है। इसमें वायु तत्त्व की प्रधानता मानी गयी है । इसे हृदय चक्र भी कहा जाता है ।
5. विशुद्धि चक्र - हृदय के ऊपर कण्ठ स्थान मे थाइराइड ग्रन्थि के पास स्वर-यन्त्र में इसका स्थान माना जाता है। इसमें वायु तत्त्व की प्रधानता है ।
6. आज्ञा चक्र - दोनों भौओं के बीच मे अन्दर की ओर भूरे रंग के कणों के समान मांस की दो ग्रन्थिया है। वहां इसका स्थान माना गया