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06 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण उच्चरित होते ही वक्ता स्वय के या श्रोता के चित्त में यह स्फोट अर्थ के रूप में उद्भासित होता है। व्याकरण (पाणिनि व्याकरण) के प्रसिद्ध भाष्यकार पतञ्जलि ने इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया है। व्याकरण मे उनकी स्फोटवाद की व्याख्या प्रसिद्ध है ही। भर्तृहरि ने अपने ग्रन्थ वाक्यपदीय मे दार्शनिक सन्दर्भ मे स्फोट का उल्लेख किया है। इस स्फोटवादी सिद्धान्त के अनुसार शब्दो के द्वारा जो अर्थ प्रकट होता है वह न तो वाणी में होता है और न ही शब्दो मे, वह तो उन वर्णो और शब्दो मे सन्निहित शक्ति के कारण ही अभिव्यक्त होता है। यह शक्ति ही स्फोटक कहलाती है। काव्य-शास्त्र मे वक्रोक्ति, ध्वनि और व्यजना आदि के रूप मे इसी शब्द-शक्ति को स्वीकार किया गया है। बह्मवादियो के अनुसार यह स्फोट-शक्ति शुद्ध माया के प्रथम विवत्मिक नाद में निहित है। नाद ही जगत का मूल है और यह जगत् अर्थ रूप मे शब्द से निप्पन्न है। ___ जैन धर्म के अनुसार तीर्थकर केवल-ज्ञान प्राप्त कर जिस निरक्षरी और ओकारात्मक वाणी द्वारा उपदेश देते है, वह वाणी ही समस्त अर्थो और विद्याओ से वहत परे है। इस वाणी को जीव मात्र अपनीअपनी भापा मे ममझ लेते है। नाद ब्रह्म या केवली की दिव्य-ध्वनि के मूलाधार पर ही समस्त मष्टि का विस्तार आधृत है। आज आवश्यकता यह है कि हम उस मूल ध्वनि से पर्याप्त भटक गये है और उसकी पहचान खो बैठे है। यह ध्वनि महामन्त्र णमोकार मे है। णमोकार मन्त्र में वर्ण और ध्वनि
णमोकार मन्त्र समस्त वर्णों का प्रतिनिधि मन्त्र है। स्वर एव व्यजनमय सारी मातका शक्तिया उसमे हैं। प्रत्येक वर्ण मन्त्र में एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित शक्ति के रूप मे विद्यमान है। उस वर्ण का स्वरूप, उसका रग, उसका तत्त्व, उसकी आकृति और उससे उत्पन्न होने वाले स्पन्दन (ऊर्जात्मक या तेजोलेश्यात्मक) को पूर्णतया समझना होगा। स्पन्दन उच्चारण और मनन ऊर्जा से सम्बद्ध है। शक्ति प्राप्ति के लिए स्पदन को समझना है। स्पन्दन के लिए ध्वनि सख्या और अर्थ का त्रिक जडना आवश्यक है। इन तीनों के विकास में वाक्, प्राण और मन का भी क्रम है। वाक्, प्राण और मन इन तीनों