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________________ " - महामन्त्र णमोकार और ध्यान विज्ञान 61 . प्रमुख उच्चारण अवयव और उनकी क्रियाएं संक्षेप में इस प्रकार फेफड़े-फेफडो में श्वास-प्रश्वास की क्रिया निरन्तर होती रहती है। यही श्वास बाहर आने पर ध्वनि का रूप धारण करती है । फेफडो के ऊपर स्थित श्वास नली से होकर ही श्वास वाहर आती है-इस श्वास से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। श्वासनलिका भोजन नलिका और अभिकाकल-हम प्रतिक्षण नाक के द्वारा भीतर की तरफ सांस लेते हैं और उसे फेफड़ो में पहचाते है। वही श्वास (वायु) फेफडो को स्वच्छ कर फिर बाहर निकल जाती है । यह श्वास नलिका फेफडे का ही एक अग है। __श्वास नलिका के पीछे भोजन नलिका है जो नीचे आमाशय तक जाती है। इन दोनों नलिकाओ को पृथक करने के लिए इन दोनों के बीच मे एक दीवाल है। भोजन नलिका के साथ श्वास नलिका की ओर झुकी हुई एक छोटी-सी जीभ है। जिसे अभिकाकल कहा जाता है। श्वास नलिका को भोजन के सम बन्द करने का इसी का काम है। यह दीवाल भोजन निगलते समय श्वासनली के मुख को बन्द कर देती है और तब भोजन नली खल जाती है जिससे होकर भोजन सीधा आमाशय मे पहुच जाता है। श्वास नली वन्द न हो तो भोजन उसमे पहुचेगा, उस स्थिति मे मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। स्पष्ट है कि भोजन के समय मौन रखना श्रेयस्कर है क्योंकि बात करने पर श्वास नलिका खुलेगी ही और भोजन उस ओर भी जा सकता है। स्वर यन्त्र-स्वरतन्त्री-श्वास नलिका के ऊपरी भाग मे अभिकाकल से नीचे ध्वनि उत्पन्न करने वाला प्रधान अवयव ही स्वर यन्त्र कहलाता है। यही ध्वनि यन्त्र भी कहा जाता है। बाहर गले में जा उभरी ग्रन्थि (टेटुआ) दिखती है वह यही है। स्वर यन्त्र मे पतली झिल्ली के बने दो परदे होते है। इन्हे ही स्वरतन्त्री कहते। अग्रेजी मे इसे (Vocal Chord) कहा जाता है । __ मुखविवर, नासिका विवर और अलिजिह्वा (कौआ)-स्वर यन्त्र के ऊपर ढक्कन (अभिकाकल) होता है । इसके ऊपर एक खाली स्थान है जिसे हम चौराहा कह सके है। यहा से चार मार्ग (श्वास नलिका,
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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