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59 महामन्त्र गमोकार और पनि विज्ञान तथा 'स' ध्वनियों के लिए (s), (C) प्रतीक हैं। इसी प्रकार एक प्रतीक को कई ध्वनियो से भी उच्चरित किया जाता है। अग्रेजी में ही देखिए-(G) जी द्वारा 'ग' और 'ज' ध्वनि उच्चरित होती है। द्वारा 'ट' एवं 'त' ध्वनि, इसी प्रकार D द्वारा 'ई' एवं 'द' ध्वनि उच्चरित होती है। इस समस्या को ध्वनि लिपि द्वारा सुलझाया जाता है। इसमें एक ध्वनि एक निश्चित संकेत द्वारा व्यक्त होती है। उच्चारण, सवहन, एव ग्रहण के आधार पर ध्वनि विज्ञान की तीन शाखाएं हो जाती हैं : 1. औच्चारणिक (Articulatory phonetics) 2 भौतिक (Acoustic Phonetics) 3 श्रोत्रिक (Auditory phonetics)
औच्चारिनक शाखा द्वारा ध्वनियों की क्षमता (शक्ति) और अन्य ध्वनियो से भिन्नता का ज्ञान होता है। उदाहरण के लिए चल, उत्कल. धवल एव शक्ल शब्दो में प्रारंभिक ध्वनि च, उ, ध, शु एक दूसरी से कितनी भिन्न हैं इसका पता औच्चारणिक ध्वनि विज्ञान यंत्र से लग सकता है। इसी प्रकार उक्त सभी शब्दों की अन्तिम ध्यनि ल होने पर भी अपनी पूर्ववर्ती ध्वनि के कारण किस प्रकार उच्चारणगत भिन्नता या समानता रखनी है इसका भी पता उक्त विज्ञान द्वारा लगता है। पच पदीय णमोकार मन के प्रत्येक पद के अन्त में 'ण' ध्वनि, आती है। प्रारभ के चार पदों में 'आ' के बाद 'ण' ध्वनि आती है। इसका ('आ' ध्वनि का) 'ण' ध्वनि पर उच्चारणगत प्रभाव सूक्ष्म होने के कारण सामान्यतया समझना कठिन है। परन्तु चतुर्थ पद णमो उवज्झायाणं 'के 'ण' का और णनो लोए सम्य साहूण के 'ण' का ध्वन्यात्मक अन्तर उनकी पूर्ववर्ती ध्वनि आ और ऊ के आधार पर बहुत अधिक हो जाता है। इसे ध्वनियन्त्र के माध्यम से और मातृका शक्ति के माध्यम से भी समझा जा सका है।
उच्चारण अवयव :
मानवीय ध्वनि के उत्पादन, नियमन एवं वितरण मे उच्चारण अर्थात सम्पूर्ण मुख-विवर का महत्वपूर्ण योगदान है। उच्चारण यन्त्र दो प्रकार का होता है-एक स्थिर और दूसरा चल। कंठ-नलिक, नासिक विवर, नीचे की ताल के विभिन्न भाग, ऊपरी ओष्ठ और दात स्थिर उच्चारण अवयव हैं । स्वर तत्री, जिह्वा, नीचे का ओष्ठ आदि चल उच्चारण अवयव हैं। कुछ भाषा वैज्ञानिक स्थिर उच्चारण