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णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता
णमोकार मन्त्र का मूल रचयिता कौन है ? इस सृष्टि का रचयिता कौन है ? णमोकार मन्त्र कब रचा गया ? आदि-आदि प्रश्न उठते ही रहे है । आगे भी उठते ही रहेंगे । मानव स्वभाव गुण के साथ प्राचीनता को भी देखता ही है । सहस्रो वर्षों के अनुसधान से यही ज्ञात हो सका है कि यह मन्त्र अनादि-अनन्त है । प्रत्येक तीर्थकर के साथ स्वत प्रादुर्भूत होता है। तीर्थकर इसके माध्यम से धर्म का प्रचार-प्रसार करते है । वास्तव मे यह मन्त्र मूलत ओकारात्मक है। इसका 'ओ' का विकसित रूप ही पचपरमेष्ठी नमस्कार मन्त्र या णमोकार मन्त्र है। यह मन्त्र मातृका रूप है। यह ओम् में से निकलता है और ओम् मे ही लय हो जाता है। ओकार के प्रति यह नमन भाव जैन मात्र के कण्ठ पर रहता है और प्रत्येक शास्त्र सभा या मंगल कार्य के प्रारम्भ में पढा जाता है-
ओकारं बिन्दु सयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैत्र, ओकाराय नमो नमः ॥
अर्थात् बिन्दु सयुक्त ओकार का योगी नित्य ध्यान करते है । काम और मोक्ष दायक ओकार को पुन - पुन नमस्कार हो। इस इलोक मे 'नित्य' शब्द से इस ओकार की नित्यता प्रकट होती है । ओ अर्धोष्ठ्य ध्वनि है। इसके उच्चारण में ओष्ठ आधे खुलकर सम्पुट (अर्ध सम्पुट ) हो जाते है और 'म्' का उच्चारण पूर्ण होते-होते ओष्ठ बन्द हो जाते है । 'म्' का उच्चारण स्थान ओष्ठ है । स्पष्ट है कि 'ओम्' के उच्चारण मे स्वर और स्पर्श व्यंजनो का समावेश प्रतीकात्मक रूप से है और वाणी विराम अर्थात पूर्णता की स्थिति भी है।
अब प्रश्न यह है कि सिद्धान्त और श्रद्धा के साथ इतिहास अपना समाधान चाहता है । इतिहास में तिथि और घटना का ही महत्व होता है । वास्तव मे तिथियों और घटनाओ का सिलसिलेवार संग्रह ही इतिहास होता है। कानून की भाँति इतिहास भी साक्ष्यजीवी होता है ।