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34 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण भक्ति का अभाव है-अर्थात् जीवन शक्ति को चैतन्य देने वाली अग्नि शक्ति का अभाव है। अतः ऋषियो ने अहं को अहं का रूप दिया--उसमे अग्नि शक्तिवाची 'र' को जोडा। इससे जीवात्मा को उठकर परमात्मा तक पहुचने की शक्ति प्राप्त हुई। अत: अर्ह का विज्ञान बडा सुखद आश्चर्य प्रदान करने वाला सिद्ध हआ। 'अ' प्रपञ्च जीव का बोधक-बन्धन बद्ध जीवन का बोधक और 'ह' शक्तिमय पूर्ण जीव का बोधक है। लेकिन 'र'-क्रियमान क्रिया से युक्त-उद्दीप्त और परम उच्च स्थान मे पहुचे परमात्व तत्त्व का बोधक है।
विभिन्न कार्यो के लिए शब्दो को मिलाकर मन्त्र बनाए जाते है। मन्त्रो के प्रकार, प्रयोजन, प्रभाव अनेक है। उनको विधिवत समझने और जीवन मे उतारने का सकल्प होने पर ही यह मन्त्र विज्ञान स्पष्ट होगा-कार्यकर होगा। जिस प्रकार रसायन शास्त्र मे विभिन्न पदार्थों के आनुपातिक मिश्रण से अद्भुत क्रियाए और रूप प्रकट होते है, उसी प्रकार शब्दो की शक्ति समझकर उनका सही मिश्रण करने से उनमें ध्वसात्मक, आकर्षक, उच्चाटक, वशीकरणात्मक एव रचनात्मक शक्ति पैदा की जाती है-मन्त्रो मे यही बात है। मन्त्र सूक्ष्म रूप हैवीज रूप है जिससे बाह्य वस्तु रूपी वृक्ष उत्पन्न होता है, तो दूसरी
ओर लोकोत्तर मुख के द्वार भो खुलते है। __मन्त्र आत्म-ज्ञान और परमात्म सिद्धि का मूल कारण है। परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है जब ज्ञान हृदयस्थ हो जाए और आचरण में ढल जाए। महात्मा गाधी ने उचित ही कहा है-"अगर यह सही है
और अनुभव वाक्य है तो समझा जाए कि जो ज्ञान कंठ से नीचे जाता है और हृदयस्थ होता है, वह मनुष्य को बदल देता है। शर्त यह कि वह ज्ञान आत्म-ज्ञान है।"*
X "जब कोई सच्चा ही वचन कहता है, और व्यवहार भी ऐसा ही करता है। हम उसका असर रोज देखते है। फिर भी उस मुताबिक न बोलते है न करते हैं।"
ज्ञान आचरण के बिना व्यर्थ है। उसी प्रकार चरित्र की जड
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* बापू के आशीर्वाद-पु. 206-217