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मन्त्र और मन्त्र विज्ञान / 29 होकर प्रकट होता है। हर व्यक्ति व्यंजना को ग्रहण नहीं कर पाता है । व्यंजना को ही प्रकारान्तर से ध्वनि कहा गया है ।
श्री रामचरित मानस के बालकाण्ड में सीताजी की एक सखी जनक वाटिका में आए हुए राम और लक्ष्मण को देखकर आनन्दमग्न होकर सीता और अन्य सखियों से कह रही है—
“देखन बाग कुंअर दोउ आए, वय किसोर सब भांति सुहाए । श्याम गौरि किमि कहौं बखानी, गिरा अनयन नयन बिनु बानी ।। " *
अर्थात् दो कुमार बाग देखने आए है। उनकी किशोरावस्था है, वे प्रत्येक दृष्टि से सुन्दर है । वे श्याम और गौरवर्ण के है । उनका वर्णन मैं कैसे करू ? वाणी के नैन नही और नैन बिना वाणी के है । इस चौपाई का सामान्य अर्थ तो स्पष्ट है ही, परन्तु चतुर्थ चरण मे जो भाव व्यजना द्वारा व्यक्त हुआ है, उसे केवल मर्मज्ञ ही समझ सकते हैं। राम और लक्ष्मण के लोकोत्तर रूप को आखो ने देखा है-अतः आखे ही पूरी तरह बना सकती है, परन्तु आंखो के पास जिह्वा नही है, कैसे कहे ? उधर जिह्वा ने देखा नही है — देख ही नही सकती - कैसे बोले ? सब कुछ कह दिया और लगता है कुछ नही कहा । राम-लक्ष्मण का सौन्दर्य अनिर्वचनीय है, मनसा वाचा परे है। अनुभूति का विषय है। इस ध्वन्यात्मकता को समझे बिना उक्त चरण का आनन्द नही आ सकता। यही बात मन्त्र को भाव गरिमा मे है। आम आदमी अर्थ के साधारण स्तर की ही जीवन भर परिक्रमा करता रहता है और उसका मन्त्र की आत्मा से तादात्म्य नहीं हो पाता है ।
ध्वनि का जहा नादमूलक अर्थ है वहा मन्त्र के उच्चारण स्तरों का ध्यान रखकर ही उसका पूरा लाभ लिया जा सकता है । मन्त्र विज्ञान मे भक्त की चेतना और मन्त्रोच्चार से उत्पन्न ध्वनि तरंग जब निरन्तर घर्षित होते है तो समस्त शरीर, मन और प्राणो मे एक अद्भुत कम्पन आस्फालित होता है। धीरे-धीरे इस कम्पन से एक वातावरणमन्त्रमयता का वातावरण निर्मित होता है और भक्त उसमें पूर्णतया लीन हो जाता है। यह लीन होने की सम्पूर्णता ही मन्त्र का साध्य है ।
* रामचरित मानस - बालकाण्ड - पू० 232