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28 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण म्तर, 2. अर्थ का स्तर, 3 ध्वनि का स्तर-नाद का स्तर, व्य जना शक्ति का स्तर, 4 सम्मिश्रण-फलितार्थ ।
भाषा का स्तर :
यदि उदाहरण के लिए हम णमोकार मन्त्र को ही ले तो जब पाठक या भक्त पहली बार मन्त्र को पढता है या सुनता है तो वह मामान्यतया मन्त्र का प्रचलित भाषा रूप ही जान पाता है और उसके माथ-साथ सामान्य अर्थ-बोध को जानने के लिए कुछ सचेष्ट होता है। यहा भाषा का अर्थ है रचना का शरीर और उससे प्रकट रूपात्मक या ध्वन्यात्मक सम्मोहन। यह किसी रचना को जानने की पहली और मामान्य स्थिति है।
अर्थ का स्तर:
दूसरी, तीसरी, चौथी बार जब हम मन्त्र को पढते या जपते है और समझने का प्रयत्न करते है तो हम शब्दो के स्थल अर्थ के परिवेश मे-परिचित अर्थ के परिवेश मे चले जाते है। णमोकार मन्त्र मे अर्थ के स्तर पर अरिहन्तो को नमस्कार हो, सिद्धो को नमस्कार हो आदि-अर्थ से हम परिचित होते है। इससे हमारा मन्त्र से कुछ गहरा नाता जुडता है, परन्तु अभी पूर्णता दूर है। यह स्तर तो एक माधारण एव अविकसित मस्तिष्क का है। अविकसित मानसिकता 50 वर्ष के व्यक्ति में भी हो सकती है। दूसरी ओर 10 वर्ष का बालक भी प्रत्युत्पन्नमति के कारण मानसिक स्तर पर विकसित हो सकता है। यह तो हम नित्यप्रति देखते ही है कि कई व्यक्ति जीवन भर अर्थ के स्थूल स्तर में कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहते है। उनकी मानसिकता का एक स्तर बन जाता है।
ध्वनि का स्तर :
काव्य शास्त्र शब्द शक्तियो का विवेचन है । ये शब्द शक्तिया तीन है-अमिधा, लक्षणा और व्य जना । सौन्दर्य प्रधान एव जीवन की गम्भीर अनुभूति के विषय को प्राय व्यजना द्वारा ही प्रकट किया जाता है । इससे उसकी मुन्दरता बढ़ती है और मूल भाव अति प्रभावी