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________________ 160 / महामन्त्र णमोकार . एक वैज्ञानिक बन्वेषण मुनियों एव तीर्थकरों के महान कार्यों और आदर्शों से प्रेरणा लेते हैं। मन्त्र तो अन्ततः अनादि अनन्त हैं। तीर्थकरो ने भी इनसे ही अपना तीर्थ पाया है। जब हमे किसी मगल की, किसी लोकोत्तम की शरण लेनी है, तो स्वाभाविक है कि हम महानतम को ही अपना रक्षक और आराध्य बनाएगे और हमारा ध्यान हमारी दृष्टि महामन्त्र णमोकार पर ही जाएगी। स्वय की सकीर्णता और सांसारिक स्वार्थपरता को त्यागकर हमे अपने ही विराट मे उतरना होगा--तभी महामन्त्र से हमारा भीतरी नाता जुडेगा। महानन्त्र तक पहुचने के लिए हमे मन्त्र (शुद्ध-चित्त) तो बनाना ही होगा। अन्तत इस महामन्त्र के माहात्म्य एव प्रभाव के विषय मे अत्यन्त प्रसिद्ध आर्षवाणी प्रस्तुत है "हरइ दुहं कुणइ सुहं, जणइ जसं सोसए भव समुदद। इह लोए पर लोए, सुहाण मूलं गमुक्करो॥" अर्थात् यह नवकार मन्त्र दुखो को हरण करने वाला, सुखो का प्रदाता, यशदाता और भवसागर का शोषण करने वाला है। इस लोक और परलोक मे सुख का मल यही नवकार है। "भोयण समये समण, विबोहणे-पवेसणे-भये-बसणे। पंच नमुक्कार खलु, समरिज्जा सम्वकालंपि॥" अर्थात भोजन के समय, सोते समय, जागते समय, निवास स्थान मे प्रवेश के समय, भय प्राप्ति के समय, कष्ट के समय इस महामन्त्र का स्मरण करने से मन वांछित फल प्राप्त होता है। महामन्त्र णमोकार मानव ही नही अपितु प्राणी मात्र के इहलोक और परलोक का सबसे बडा रक्षक एवं निर्देष्टा है। इस लोक में विवेकपूर्ण जीवन जीते हुए मानव अपना अन्तिम लक्ष्य आत्मा की विशुद्ध अवस्था इस मन्त्र से प्राप्त कर सकता है-यही इस मन्त्र का चरम लक्ष्य भी है। "जिण सासणस्स सारो, चदुरस पुण्याण जे समुबारो। जस्स मणे नव कारो, संसारो तस्स कि कुणह।" अर्थात नवकार जिन शासन का सार है। चौदह पर्व का उद्धार है। यह मन्त्र जिसके मन मे स्थिर है संसार उसका क्या कर सकता है, अर्थात् कुछ नहीं विगाड़ सकता। 000
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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