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णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एक प्रभाव / 153
भोपाल-मैना सुन्दरी
समस्त जैन शाखाओ मे श्रीपाल और उसकी पत्नी मैना सुन्दरी की कथा प्रसिद्ध है। ___ थोपाल की बाल्यावस्था में ही उसके पिता राजा सिंहरथ की मृत्यु हो गई। श्रीपाल के चाचा ने तुरन्त राज्य पर अधिकार कर लिया और श्रीपाल की मां मन्त्रियो की सहायता से अपनी और अपने पुत्र की जान वचाने के लिए निकल भागी। जगलों मे भटकते-भटकते श्रीपाल को कुष्ट रोग हो गया। किसी तरह उज्जैन नगरी मे माता-पुत्र पहुचे।
उज्जैन के राजा के दो पुत्रिया धी-सुरसुन्दरी और मैना सुन्दरी। सुरसुन्दरी हर बात मे अपने पिता का झूठा समर्थन करके लाभ उठा लेती थी, जबकि मैना सुन्दरी पिता का आदर करते हुए भी सत्य का ही समर्थन करती थी।
एक बार राजा ने भरी सभा मे अपनी दोनों बेटियों को बुलाया और पूछा-"तुम्हे सब प्रकार के सुख देने वाला कौन है ?"
सुरसुन्दरी ने उत्तर दिया, "पूज्य पिताजी, मैं जो कुछ भी हू, आपकी ही कृपा से हू । आप ही मेरे भाग्य विधाता है।" इस उत्तर से राजा का अहकार तुष्ट हुआ और उसने हर्ष प्रकट किया।
अब मैना मुन्दरी को उत्तर देना था। उसने कहा, "पिताजी, मैं जो कुछ भी हू, अपने पूर्वजन्म के शुभाशुभ कर्मो के कारण है । आप भी जो कुछ हैं अपने शुभ कर्मों के कारण हैं । मेरा और आपका पुत्री-पिता का नाता तो निमित्त मात्र है।"
इस उत्तर से पिता-राजा को बहुत गुस्सा आया। राजा ने सुरसुन्दरी का विवाह एक राजकुमार से किया और उसे बहुत अधिक धन-सम्पत्ति देकर विदा किया।
मैना सुन्दरी का विवाह कुष्ट रोगी श्रीपाल से किया गया और दहेज में कुछ नही दिया गया। राजा ने कहा-"मैना सुन्दरी अब देख अपने कर्मों का फल । अपनी किस्मत को बदलकर दिखाना।"
मैना सुन्दरी ने विनयपूर्वक अपने पिता से कहा, "पिताजी, मैं आपको दोष नहीं देती है। मेरे भाग्य मे होगा तो अच्छा समय आएगा ही । मैं धर्म पर और महामन्त्र पर अटूट श्रद्धा रखती है।