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णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव | 143
अर्थात् -यह पच नमस्कार मन्त्र सभी प्रकार के पापो को नष्ट करता है। अधमतम व्यक्ति भी इस मन्त्र के स्मरण मात्र से पवित्र हो जाता है । यह मन्त्र दधि, दूर्वा, अक्षत, चन्दन, नारियल, पूर्णकलश, स्वस्तिक, दर्पण, भद्रासन, वर्धमान, मस्त्ययुगल, श्रीवत्स, नन्द्यावत आदि मगल वस्तुओ मे सर्वोत्तम है। इसके स्मरण और जप से अनेक सिद्धिया प्राप्त होती हैं।
स्पष्ट है कि इस परम मगलमय महामन्त्र में अदभत लोकोत्तर शक्ति है। यह विद्यत तरग की भाति भक्तो के शारीरिक, मानसिक एव आध्यात्मिक सकटो को तुरन्त नष्ट करता है और अपार विश्वास और आत्मबल का अविरल सचार करता है । वास्तव मे इस महामन्त्र के स्मरण, उच्चारण या जप से भक्त की अपनी अपराजेय चैतन्य शक्ति जाग जाती है। यह कडलिनी (तेजस शरीर) के माध्यम से हमारो आत्मा के अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान और अनन्त वीर्य को शाणित एव सक्रिय करता है। अर्थात आत्म साक्षात्कार इससे होता है।
पच परमेष्ठियो की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए उनसे जनकल्याण की प्रार्थना इस प्रसिद्ध शार्दूल विक्रीडित छन्द मे की गयी है
"अहंन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धि स्थिताः । आचार्याजिन शासनोन्नतिकरा. पूज्या उपाध्यायका.॥ श्रीसिद्धान्त सुपाठका मनिवरा रत्नत्रयाराधका.। पचते परमेष्ठिन प्रतिदिनं कुर्वन्तुनो मङ्गलम् ॥' जिनशासन मे अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साध, इन पाचो की परमेष्ठी सज्ञा है। ये परम पद मे स्थित हैं अत. परमेष्ठी कहे जाते हैं। चार घातिया कर्मो का क्षय कर चुकने वाले, इन्द्रादि द्वारा पूज्य, केवलज्ञानी, शरीरधारी होकर भी जो विदेहावस्था मे रहते हैं, तीर्थकर पद जिनके उदय मे है, ऐसे अरिहन्त परमेष्ठी हमारा सदा मगल कर। अष्ट कर्मों के नाशक, अशरीरी, परम निर्विकार सिद्ध परमेष्ठी हमारा सदा मगल करे। जिनशासन की सर्वतोमुखी उन्नति जिनके द्वारा होती है और जो स्वय शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार चरित्र पालन करते हैं ऐसे आचार्य परमेष्ठी तथा समस्त शास्त्रो के ज्ञाता