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138 / महामंत्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
___ मगल पाठ की इन पक्तियो मे चार को ही मगल स्वरूप माना गया है। ये चार है-अरिहन्त, मिद्ध, माध और केवली द्वारा प्रणीतधर्म । उक्त चार ही ससार में श्रेष्ठ है। मैं इन चारो की शरण लेता हूं और किसी की नही।
यहा ध्यान देने की बात यह है कि णमोकार मन्त्र को नवकार का विस्तार देते समय उसके अक्षुण्ण रूप की रक्षा करते हए उसके फल और महत्त्व को भी उसमे मिला लिया गया है। परन्तु मगल पाठ मे, केवल अरिहन्त, सिद्ध और साध को ही लिया गया गया है, केवली प्रमीग धर्म को महत्ता की शरण ली गयी है। आचार्यों आर उपाध्यायों को छोट दिया गया है। वास्तव मे रत्नत्रय को विशदता और चारित्र्य की उदात्तता के ध्यान से सम्भवत ऐमा किया गया होगा। अरिहन्त और सिद्ध तो देव ही है और माध भी देवतुल्य ही हैं। आचार्य और उपाध्याय को केवली प्रणीन धर्म के व्याख्याता के रूप मे चतुर्य मगल के अन्तर्गत गभित करके समझना समीचीन होगा।
भोकारात्मक
सक्षिप्तता और सुकरता के कारण इस महामन्त्र को ओकारात्मक भी माना गया है। विद्वानो और भक्तो का एक शक्तिशाली वर्ग है जो पंच नमस्कार मन्त्र का ओकार का ही विकसित रूप मानता है। ओकार मे पच परमेष्ठी गभित है ऐसी उस वर्ग की मान्यता है। सभी वों मे इस मान्यता का आदर है।
ओकार मे पचपरमेष्ठी इस प्रकार गभित हैं1 अरिहन्त - अ 2 (सिद्ध) अशरीरी - अ 3. आचार्य - आ अ+अ+ आ = आ 4. उपाध्याय
उ आ+ उ =ओ 5 (साधु) मुनि म् ओ+म्=ओम् इसी पचपरमेष्ठी युक्त ओकार के विषय में यह श्लोक सर्वविदित