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126 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक बन्वेषण
होगा । अत सिद्ध परमेष्ठी को सर्वोपरि महत्ता स्वयसिद्ध है। आचार्य हेमचन्द्र का महामन्त्र के प्रति यह भाव वास्तव मे सिद्ध सन्दर्भ मे ध्यातव्य है -
"हरइ दुहं, कुणइ सुहं, जणइ जसं सोमए भव समुद्व । इह लाह परलोकय - सुहाण, मूलं मुक्का ॥"
अर्थात् महामन्त्र णमोकार दुखहर्ता एव सुखदाता है । यश उत्पन्न करता है, भव समुद्र को सुखाता है । यह मन्त्र इस लोक एव परलोक में सुखो का मूल है।
सिद्धों के सम्बन्ध मे एक बात और ध्यान देने की है - सामान्यतया कुल सात रंग माने जाते है-लाल, नीला, पीला, नारगी, हरा, नीला बंगनी, बैगनी ( वायलेट) । इनमे कुल तीन ही मूल रग हैं - लाल, नीला, पीला। बाकी रग इन रंगों के मिश्रण से बनते हैं । आश्चर्य यह है कि सफेद और काला रंग भी मिश्रण से बनता है, मौलिक नही हैं मिश्रण से तो फिर सहस्रो रंग बनते हैं । उक्त तीन मूल रंगो मे भी लाल रंग ही प्रमुख है । वही ऊष्मा और जीवन का रंग है। यही सिद्ध परमेष्ठी का रंग है । अत इस स्तर पर भी सिद्धो की सर्वोपरि महत्ता प्रकट होती है ।"
णमो आइरियाणं
आचार्य परमेष्ठियों को नमस्कार हो। जिनके मन, वचन और आचरण में एकरूपता है, वे ही विश्व-जीवो के उद्धारक - पथ-प्रदर्शक आचार्य है । ये आचार्य स्वयं के आचरण मे ज्ञान को परीक्षित एव पवित्र करके ही प्राणियों को सयम, तप एव ज्ञान का उपदेश देते हैं । वास्तव में आचार्य परमेष्टी अपने आचरण द्वारा ही प्रमुख रूप से जीवो मे स्थायी आध्यात्मिक गुणो का सचार करते हैं । आचार्य परमेष्ठी के निजी आचरण द्वारा ही उनके निर्मल विचार प्रकट होते है । ये उपदेश
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मी नमस्कार पचविधमाचार चरन्ति चारयन्तीत्याचार्या ।”
धवला टीका प्रथम -१० 48