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118 / महामन्त्र गमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
सान्निध्य एव आध्यात्मिक उन्नयन के लिए योग-साधना की महनीयता स्वत सिद्ध है। __ "योग समाप्त होते है, वही योग का आदि बिन्दु है । योग का मूल स्त्रोत अयोग का अर्थ है केवल आत्मा। योग का अर्थ है आत्मा के साथ सम्बन्ध की स्थापना । अयोग अयोग होता है, योग-योग होता है, वह न जैन होता है, न बौद्ध और न पात जल।" योग विज्ञान है और हैं प्रयोगात्मक मनोविज्ञान । जीवन को अमर सार्थकता योगमय नियमित कार्यक्रम ही दे सकता है।
णमोकार महामन्त्र का प्रत्येक अक्षर अक्षय शक्तियो का भण्डार है । इनके उदघाटन और तादात्म्य की स्थिति योग द्वारा ही जीव मे सभव है । अत स्पष्ट है कि योग-मार्ग से साक्षात्कृत मन्त्र स्वत जीव मे या साधक मे सहज ही विश्वजनीन समत्व एव शान्ति का परात्पर उदघोष करता है । दृष्टि और दृष्टिकोण का यही सर्वांगीण विस्तार मन्त्रो का मर्म है। शत प्रतिशत लक्ष्यात्मकता योग का प्राण है। ।