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110 / महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण एव मस्तिष्क प्रभावित एव सक्रिय होते हैं । व्यान-समस्त शरीर को प्रभावित करता है । अगो की सधिया, पेशिया और कोशिकाएं इससे क्रियाशील रहती हैं। ध्यान रखे-1 आसन के बाद प्राणायाम करे। 2 दूषित वातावरण मे प्राणायम न करे। 3. भोजन के बाद 3 घटे तक प्राणायाम न करे। 4 प्राणायाम प्रातः (6 से 7 बजे) तथा साय (5 से 6 बजे) करे। 5. प्राणायाम के लिए पद्मासन एव सिद्धासन उत्तम है। 6 प्राणायाम के पूर्व मलाशय एव मूत्राशय रिक्त हो। 7 तेज हवा मे प्राणायाम न करे। 8 प्राणायाम के समय शरीर शिथिल एव मुखाकृति सौम्य रहे। मन तनाव रहित रहे। प्राणायाम की महत्ता के विषय मे 'ज्ञानार्णव' मे कहा गया है
"जन्मशत जनितमग्रं, प्राणायामात् विलीयते पापम् ।
नाड़ी युगलस्यान्वं, यतेजिताक्षस्य वीरस्य ॥" अर्थात् प्राणायाम से मैकडो जन्मो के उग्र पाप दो घण्टो मे समाप्त हो जाते है । साधक जितेन्द्रिय बनता है।
प्रत्याहार–इन्द्रियो और मन को विषयो से पृथक कर आत्मोन्मुख करने की प्रक्रिया है। मन को ऊपर उठाना अर्थात मन का ऊवाकरण करना (आज्ञाचक्र मे ले आना) प्रत्याहार की पूर्णता है। प्रत्याहार फलीभत हो जाने पर योगी को ममार की कोई भी वस्तु प्रभावित नही कर पाती है । प्राणायाम के पश्चात इस चिन्तन में लीन होना होता है । प्राणायाम से शरीर और श्वास वश मे होती है। प्रत्याहार से मन निर्मल और निराकुल होकर आत्मा मे निमज्जित हो जाती है ।
धारणा, ध्यान और समाधि--युवाचार्य महाप्रज्ञ अपनी पुस्तक 'जैन योग' मे कहते है -"जैन धर्म की साधना पद्धति का नाम मुक्तिमार्ग था। उसके 3 अग है। सम्यक-दर्शन, सम्यक-ज्ञान, सम्यक चरित्र। महोष पतजलि के योग की तुलना में इस रत्नत्रयी को जैन योग कहा जा सकता है। जैन साधना पद्धति में अष्टाग योग के सभी अगो की व्यवस्था नहीं है । वहा प्राणायाम, धारणा और समाधि नही है। शेष अगो का भी प्रतिपादन नही है।"
प्रत्याहार के अन्तर्गत मन आत्मा में लीन हो जाता है। इसमें स्थिरता और लीनता की दिशा में धारणा समर्थ है। धारणा से