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________________ श्री आचार्य के 36 गुण द्वारा सप दश धर्म जुन, पालै पचाचार। षट् आवश्यक विगुप्ति गुण, आचारज पद सार॥ अनशन ऊनोदर कर, व्रत सख्या रस छोर। विविक्त शयन आसन धरै, काय क्लेश सुठऔर ॥ प्रायश्चित धर विनय जुत, वैयावत स्वाध्याय । पुनि उत्सर्ग विचार के, धरै ध्यान मन लाय॥ छिमा मारदव आरजव, सत्य वचन चित पाग। सजम तप त्यागी सरब, आकिंचन तिय त्याग । समता घर वन्दन कर, नाना थुति बनाय। प्रतिक्रमण स्वाध्याय जुत, कार्योत्मर्ग लगाय॥ दर्शन ज्ञान चरिव तप, वीरज पचाधार । गोपै मन वच काय को, गिन छसोस गुण सार ।। श्री उपाध्याय के 25 गण बौदह पूरब को घर, ग्यारह अग सुजान । उपाध्याय पच्चीस गुण, पढ़े पढ़ावे ज्ञान । प्रथमहि आचारांग गनि, दूजो सूवकृतांग । ठाण अग तीजो सुभग, चौथो समवायाग ।। भ्याल्यापण्णति पचमो, ज्ञातकथा षट आन । पुनि उपासकाध्ययन है, अन्त कृत दश ठान । अनुसरण उत्पावदश है, सूब विपाक पिचान । बहुरि प्रश्नध्याकरणजुत, ग्यारह अग प्रमान ।। उत्पाद पूर्व अग्रायणी, तीजो वीरजवाद । अस्ति नास्ति परमाद पुनि, पचम ज्ञान प्रवाद ।। छट्टो कर्म प्रवाद है, सत प्रवाद पहिचान । अष्टम आत्मप्रवाद पुनि, नवमो प्रत्याख्यान । विधानवाद पूरब दशम, पूर्वकल्माण महत । प्राणवाद किरिया बहुल लोकबिन्दु है अन्त । श्री सर्व साधु के 28 मूल गुण पचमहाबत समिति पच, पचेन्द्रिय का रोध। षट् आवश्यक साधुगुण, सात शेष अवबोध ॥
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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