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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान / 103
संसार को समझकर उसे नियन्त्रित कर सकते हैं और फिर आत्मकल्याण की सहजता को पा सकते है ।
णमोकार विज्ञान, अरिहन्त विज्ञान या जैन धर्म शक्तिशालियों का धर्म है, कमजोरों का नही । परम्परा और मशीन बन जाने से इसकी ऊर्जा और प्राणवत्ता तिरोहित हो गयी है। आत्मा और शरीर के सम्बन्ध को सन्तुलित दृष्टि से समझकर ही चलना श्रेयस्कर होगा ।
fron - महामन्त्र के रंगमूलक अध्ययन से अनेक प्रकार के लाभ हैं।
1 प्रकृति से सहज निकटता एव स्वयं में भी प्रकृति के समान विविधता, एकता और व्यापकता की पूर्ण सम्भावना बनती है। 2 शब्द से शब्दातीत होने मे रग सहायक हैं। अनुभूति की सघनता, भाषा लुप्त हो जाती है। धीरे-धीरे आकृति भी विलीन हो जाती है । ध्वनि, प्रकाश और चैतन्य ज्योति की यात्रा है ।
3 रंग तो साधन है - सशक्त साधन । सिद्धि की अवस्था मे साधन स्वत लीन हो जाते है ।
4. तीर्थंकरो के भी रंगो का वर्णन हुआ है। ध्यान में आकृति और रंग का महत्त्व है ही ।
5. रग- चिकित्सा का महत्त्व सुविदित है । णमोकार मन्त्र के पदो के जाप से विभिन्न रंगों की कमी पूरी की जा सकती है। रंगो को शुद्ध भी किया जा सकता है ।
6 इन्द्रधनुष के सात रंगो का महत्त्व, रग चिकित्सा का महत्त्व, रत्न चिकित्सा का महत्त्व और रश्मि चिकित्सा का महत्त्व भी समझना आवश्यक है ।
7 स्थूल माध्यम से धीरे-धीरे ही सूक्ष्म भावात्मक लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है । रग हमारे शरीर के एव मन के सचारक एवं नियन्त्रक तत्त्व हैं अत इनके माध्यम से हमारी आध्यात्मिक यात्रा अर्थात् मन्त्र से साक्षात्कार की यात्रा सहज ही सफल हो सकती है ।