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102 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
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पचपरमेष्ठी वर्ण शक्ति केन्द्र प्रतीक
रंग न्यूनता का
प्रभाव
अरिहन्त सिद्ध
श्वेत लाल
ज्ञान दर्शन
स्फटिक बाल रवि
भाचार्य पाध्याय साधु
पीला विशुद्धि दीपशिखा नीला आनन्द नभ काला शक्ति कस्तूरी
अस्वास्थ्य प्रसाद, विक्षिप्तता बौद्धिक ह्रास क्रोध प्रतिरोध शक्ति
पीत वर्ण या पीला रग मिट्टी तत्त्व के निर्माण में सहायक है । जल तत्त्व के लिए ऊर्जा को श्वेत रूप धारण करना होता है। अग्नि तत्त्व के लिए लाल रग आवश्यक है। नीला रग वायु तत्त्व का जनक है। आकाश तत्त्व के लिए भी नील वर्ण आवश्यक है। राग-द्वेष को स्थिर करके ही जल तत्त्व को नियन्त्रित किया जा सकता है। जल तत्त्व से हमारा मूत्र ही नही अपितु रक्त एव शरीर की सारी इच्छाए चालित होती है। णमो अरिहताण मे श्वेत त रग है । अ और ह में जल तत्त्व है। र मे अग्नि तत्त्व है। जल और अग्नि से हम गला, नाभि, हृदय को स्वच्छ-स्वस्थरख सकते है। इन अगो की स्वच्छता श्वेतवर्ण बर्धक होती है। रग के बिना कोई वस्तु दिखाई नहीं देती। रगो के द्वारा हमारी बीमारी का पता चलता है। डॉ० बीमार व्यक्ति की आख, जीभ, पेशाब, थूक, क्यो देखता है ? इनके रगो से वह रोग को तुरन्त जान लेता है। पृथ्वी तत्त्व का पीला रग शरीर मे व्याप्त है। इसकी कमी से रुग्णता आती है। किन्तु यदि मूत्र मे पीलापन हो तो वह रोग का कारण होता है। मूत्र का वर्ण जल तत्त्व के कारण श्वेत होना चाहिए । सफेद रग अरिहन्त का है। एक श्वेत रग रोग का है और एक श्वेत रग स्वास्थ्य का है। इस शरीर को तुच्छ, हेय और नाशवान् कहकर उपेक्षा करने से हम णमोकार मन्त्र को नही समझ सकते। शरीर की समझ और स्वास्थ्य से हम ससार को समझ सकते हैं ।