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________________ दिगंबर जैन. -.. . " आ वखते म्हें विचार कर्यों के, शुं गुरुनी आज्ञा तोडवी ? परंतु बीजीज पळे एम थई आव्यु के, साधन माटेनो आज वखत केम न होय ? माटे गमे ते थाय तोपण बोलवू के हालवं नहीं. आखरे चार-पांच जुवान माणसो म्हारी पासे व्या अने म्हने उंचकी ते सळगती चीतामां पधरावी दधिो. ज्यारे चीता उपर म्हने मूकवामां आव्यो अने तेमांना अंगारानी झाळ म्हारा शरीरने लागवा मांडतांज सिद्धि परत्वे म्हारो विचार अने गुरुनी आज्ञा न तोडवानो निश्चय एकज क्षणमां नाश थयो ! हुं मोटा शंखध्वनिथी 'मरी गयो ! मरी गयो !! बचावो, व्हार काढो' एम कहेता बहार कूदी पडयो." __ " आ विलक्षण प्रकार जोतांज मात्र चीता पासे आवी उभेला होकण मनुष्यो " अरे ! भूत रे भूत ! खरेखर भूत !" एम कही-दोडधाम करी मूकी दूर नाठा." " आ वखते ज्हेने अनाथ प्रेत समजी अमिसंस्कार कयों ते खरेखलं प्रेत नहीं, पण कोई महा बदमाश साधक होवो जोईए, एम ते परोपकारी माणसोना लक्षमा आववाने वार थई नहीं. म्हारा आ पाजीपणाथी चीता ढसळी पडी, नेथी मूळ प्रेतना दहनमां पण धक्को पहोंच्यो. आ जोतांज तेओने खूब गुस्सो चढ्यो अने ते गुस्सामा चीतानी ज्वाळाथी प्रथम तो हुँ · अधमूवो' थई गयो हतो ते तरफ लक्ष न आपतां म्हने यथेच्छ स्वाद चखाड्यो !" ___ भा हकिकत बनी गया पछी मात्र जारण, मारण, वशीकरण वगेरे बाबतमां मारी पूर्ण निराशा थई अने मंत्रसाधको
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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