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दिगंबर जैन.
" म्हें ए सर्व दिवस अने मुहूर्त साचव्यां, परंतु तेनो कई फायदो नहीं, मात्र फजेती अने बेहाल थयो. "
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" ओ विद्या साधवा माटे केटलीक वखत रात्रे फरतां फरतां, लोकोए चोर समजीने घणो मार पण मार्यो अने ते म्हारे मुंगे होंढे सहन करवो पडयो, अने नदीमां गळा जेटला पाणीमां शोध करतां करतां केटलीक वखत तळीए पण जई बेसतो. एक वखत नदीमां उभा रही मंत्रोच्चार करवा म्हों उघाडतो के तरतज तेमां पाणी भराई जई सदाने माटे बंध थवानो वखत आवतो. आ सिवाय कलाकनाकलाक आवा प्रकारे ठंडा पाणीमां गाळवानो महिना सुधी बखत आवतो ते जुदाज ! "
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एक वखत एक साधन माटे एक झाडे टंगाता, तेज झाड म्हारा शरीर उपर घसी आव्युं, परन्तु पाछळथी रहमजायुं के हुं ज्येनापर टंगातो हतो ते झाड तद्दन कोमळ छे. "
" तेमज एक वखत स्मशानमां म्हारा उपर जे प्रसंग आव्यो हतो ते घणोज भयंकर हतो, तेनुं स्मरण थतां हजु पण कंपारी छुटे छे. अमावास्यानी रात्रि हती, ऊँधा सूई मंत्र साधन करवानुं हतुं अने ते पण मनमां; गमे ते थाय तोपण म्होंमांथी एक शब्द सुद्धां काढवो नहीं एवो मारा गुरुनो हुकम हंतो. आ प्रमाणे म्हें साधनना कामनो आरंभ कर्यो अने थोडो वखत थयो नहीं एटलामां गामना लोको एक प्रेतने बाळवा