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यही कर्म करते रहने से इन व्यक्तियो के संस्कार बहुत दृढ हो जाते हैं और वे इन जीवो के कष्टो के प्रति बिलकुल विवेकशून्य व असावधान हो जाते है । परन्तु अविवेक व असावधानी पूर्वक जो भी कार्य किया जाता है, वह हिंसा के अन्तर्गत ही आता है चाहे उससे हिंसा हुई हो या न हुई हो। किन्तु यहा पर तो प्रत्यक्ष ही हिंसा हो रही है तो ये व्यक्ति हिंसक क्यो न कहलायेगे? जो व्यक्ति नित्य प्रति शराब पीते हैं, जो व्यक्ति नित्य प्रति जुआ खेलते हैं, जो व्यक्ति नित्य प्रति चोरी करते हैं, क्या वे अपराधी नही होते? क्या वे कानून की दृष्टि मे दण्डनीय नही होते?
बिल्कुल यही बात उन व्यक्तियो के सम्बन्ध मे है, जो खाद्य पदार्थों में मिलावट करते हैं, नकली दवाइयां बनाते हैं, बडिया वस्तु के स्थान पर घटिया वस्तु देते हैं तथा अन्य ऐसे ही कार्य करते हैं जिनसे प्रत्यक्ष मे हिंसा होती नही दिखती। ये व्यक्ति जान-बूझकर कोई हिंसा का कार्य करना भी नही चाहते । ये तो केवल आर्थिक लाभ के लिए ऐसा करते हैं।
यह ठीक है कि इन व्यक्तियो के भाव हिंसा करने के नहीं है और न ही प्रत्यक्ष रूप से ये कोई हिंसा करते हैं। परन्तु जो अनैतिक कार्य ये कर रहे हैं उनका परिणाम क्या होगा? ऐसे कार्यों के फलस्वरूप दूसरो को कष्ट होता है, उनका स्वास्थ्य खराब होता है और कभी-कभी इनके सेवन करने वालो की मृत्यु भी हो जाती है। घटिया वस्तुए जब अपेक्षित कार्य नहीं कर पाती तब दुर्घटनाए हो जाती हैं, जिनके फलस्वरूप जन व धन की अपार क्षति होती है। ऐसी अवस्था में ऐसे अविवेक पूर्ण और अनैतिक कार्य करने वाले हिसा के दोषी क्यों नही होंगे?