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यहाँ यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि पहली । अवस्था मे, जबकि हमारी असावधानी से उस पदार्थ में गिर कर मच्छर और मक्खी मर जाते हैं, यदि हमारे मन में जरा-सा भी यह विचार आया कि चलो अच्छा हुआ ये मच्छर व मक्खी अपने आप ही मर गये, हमने तो जान-बूझकर इनको मारा नहीं है, तो हम हिसा के दोषी अवश्य हो जायेगे । अत हमारे मन में भी यह भावना नही आनी चाहिए कि कोई जीव अपने आप ही मर जाये, या कोई अन्य व्यक्ति उस जीव की हत्या कर दे, या अन्य किसी भी प्रकार से उसे कष्ट तथा हानि पहुँचा दे। ऐसे विचार मन मे आते ही, कुछ न करते हुए भी, हम हिंसा के दोषी हो जाते हैं।
एक शंका यहा पर एक शका उठती है। एक बधिक नित्य प्रति पशुओ का बध करता है। एक मछियारा नित्य प्रति मछलिया पकडता है। एक शिकारी नित्य प्रति शिकार के द्वारा पशु-पक्षियो की हत्या करता है। इन व्यक्तियो के लिए ये नित्य के साधारण कार्य हैं। इनको इस बात का 'विचार भी नही आता कि वे इन जीवो की हत्या कर रहे हैं या इनके इन कार्यों से इन जीवो को तीव्र कष्ट हो रहा है। ऐसी परिस्थिति मे क्या वे व्यक्ति हिंसक कहलायेगे ?
यह ठीक है कि ये व्यक्ति साधारण रूप से यह कार्य कर रहे है। परन्तु साधारण रूप से यह हत्याकाण्ड करने से क्या उन पशु-पक्षियो, मछलियो आदि जीवो को कष्ट नही होता? क्या ऐसे व्यक्ति यह नहीं जानते कि वे इन जीवों का जीवन समाप्त कर रहे हैं ? वास्तव मे नित्य प्रति