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क्योकि जितनी हमारी आवश्यकताए कम होगी उतनी ही हमारी भाग-दौड कम होगी और उसी अनुपात से हिंसा भी कम होगी । हमको बेकार की और अनावश्यक वस्तुओ का सग्रह नहीं करना चाहिए। सफाई करते समय जीवजन्तुओ की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। भोजन की सामग्री भी थोडी-थोडी ही लानी चाहिए, क्योकि अधिक मात्रा मे सग्रह करने से उनमे चीटी, लट, सुलसुली आदि जीव उत्पन्न हो जाते हैं। चटनी, अचार, मुरब्बे आदि भी थोडी मात्रा मे ही बनाए, क्योकि अधिक पुराने खाद्य पदार्थों मे सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए उनके सेवन से अधिक हिसा होती है।
(४) उद्योगी हिंसा:-गृहस्थ मे रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को अपना, अपने परिवार और अपने आश्रितो का पालन-पोषण करने के लिये व जीविकोपार्जन के लिये कुछ न कुछ उद्योग व व्यवसाय करना ही पड़ता है। ये कार्य करने मे हिंसा हो जाना अवश्यम्भावी है। इस प्रकार की हिंसा को उद्योगी हिंसा कहते हैं। हमें ऐसे उद्योग व व्यवसाय तो करने ही नहीं चाहिए, जिनमे प्रत्यक्ष मे ही हिंसा होती है। जैसे मांस, मछली, अण्डे, मुर्गी, खाल, चमडे, हड्डी व उनसे बनी हुई वस्तुओ का व्यापार । ढलाई करने, भट्टा चलाने व अनाज पीसने के व्यवसाय भी ऐसे हैं, जिनमें हिंसा होने की बहुत अधिक सभावनाएं हैं। इसके विपरीत हमको ऐसे उद्योग व व्यवसाय करने चाहिए जिनमे हिंसा की सम्भावना कम से कम हो। यदि हम अनाज का व्यापार करते हो तो अधिक लाभ के लालच से अधिक अनाज इकट्ठा न करें, जिससे अधिक दिन पड़े रहने से उसमे जीव उत्पन्न न हो जाएं। हमे ऐसा साफ़