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अहिंसा-एक विवेचन
भगवान महावीर ने अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया था। उन्होने कहा था कि जो व्यक्ति सच्चा अहिसक है, वह दूसरे किसी प्रकार के पाप भी कभी नहीं करेगा। अब हम अहिसा पर तनिक विस्तार से चर्चा करेंगे। हिंसा की परिभाषा
अपने मन, वाणी और शरीर के द्वारा, जान बूझ कर तथा असावधानी से भी किसी भी प्राणी को प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूप से किमी भी प्रकार का कष्ट पहुँचाना हिसा है। अहिंसा की परिभाषा ___अपने मन, वाणी व शरीर के द्वारा जान-बूझ कर तथा असावधानी से भी, किसी भी प्राणी को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुचाना और इसी भावना के अनुरूप अपने नित्य कर्म बहुत सावधानीपूर्वक करना अहिंसा है।
हिंसा के भेद :-हिसा के मुख्यत दो भेद हैं। (१) भाव हिंसा व (२) द्रव्य हिसा - भाव हिंसा:-अपने मन मे स्वय को व अन्य किसी प्राणी
को किसी भी प्रकार से कष्ट देने का विचार
आना-भाव हिंसा है। द्रव्य हिंसा :-अपनी वाणी व कार्य से, जान-बूझकर तथा
असावधानी से भी, स्वय को व अन्य किसी