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लेते हैं। पवित्र रैवताचल (गिरनार पर्वत) पर नेमिनाथ जिनेश्वर हुए, जो कि ऋषियो के आश्रय और मोक्ष के कारण थे।"
-(प्रभास पुराण) "शत्रुञ्जय तीर्थ का स्पर्श करके, गिरनार पर्वत को नमस्कार करके, और गजपन्था के कुण्ड मे स्नान कर लेने पर फिर जन्म नहीं लेना पडता अर्थात् मुक्ति हो जाती है। ऋषभनाथ सर्वज्ञाता, सर्वदृष्टा और समस्त देवो से पूजित हैं। उन निरञ्जन, निराकार, परमात्मा, केवलज्ञानी, तीन छत्र युक्त, पूज्य मूर्ति धारक, महाऋषि, ऋषभनाथ के चरण युगल को हाथ जोडकर हृदय से आदित्य आदि सुर, नर ध्यान करते है।"
-(स्कन्द पुराण) (नोट-शत्रुञ्जय, गिरनार व गजपन्था ये तीनो स्थान
जैनियो के तीर्थ क्षेत्र हैं।) "अपना मनोवाछित कार्य सिद्ध करने के लिए गिरनार पर आया और वामन ने भगवान नेमिनाथ का नाम नेमिनाथ शिव रखा।" -(स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड,
अध्याय १६, वस्त्रापथ क्षेत्र माहात्म्य) "श्री अर्हन्त देव के प्रसाद से मेरे हर समय कुशल है। यह ही जिह्वा है जिससे जिनेन्द्र देव का स्तोत्र पढा जाये, वह ही हाथ है जिनसे जिनेन्द्र देव की पूजा की जाये, वह ही दृष्टि है जिससे जिनेन्द्र देव का दर्शन किया जाये और वह ही मन है जो जिनेन्द्र देव मे लगा रहे।"
-(स्कन्द पुराण, तीसरा खण्ड (धर्म खण्ड), अ० ३८)
"नाभि का पुत्र ऋषभ और ऋषभ से भरत हुमा। उसी के नाम से यह देश भारत कहा जाता है।" -(स्कन्द पुराण, माहेश्वर खण्डस्थ कौमार खण्ड ३७-५७)