________________
नापता है । ऐसे हे वृषभनाथ सम्राट ! इस संसार में जगरक्षक व्रतों का प्रचार करो ।" - (ऋग्वेद ३ ० ३)
"भो यजमान लोगों ! इस यज्ञ में देवों के स्वामी, सुखसन्तानवर्द्धक, दुःखनाशक, दिव्य आज्ञाशाली, अपार ज्ञानबलदाता वृषभनाथ भगवान् का आह्वान करो।" - (ऋग्वेद ३६/४-६-८-६-२-२० ) " हे वृषभनाथ भगवन् ! उदर तृप्ति के लिए सोमरस के पिपासु मेरे उदर मे मधुधारा सिंचन करो। आप अपने प्रजारूप पुत्रो को विषम संसार से तारने के लिए गाड़ी के समान हो ।" -- (ऋग्वेद ३८ / अ० ७-३-३-११)
"भो वृषभ देव आप उत्तम पूजक को लक्ष्मी देते हो । इस कारण मैं आपको नमस्कार करता ह और इस यज्ञ मे हू पूजता हू।" --४-१२२-५-२-२६
" जो मनुष्याकार अनन्त दान देने वाले और सर्वज्ञ अर्हन्त है वे अपनी पूजा करने वालो की देवों से पूजा कराते हैं ।"
-अ० ४ अ० ३ वर्ग ε "भो अर्हन्तदेव । तुम धर्म रूपी वाणो को सदुपदेश रूपी धनुष को, अनन्तज्ञानादि रूपी आभूषणों को धारण करने वाले हो । भो अर्हन् । आप जगत प्रकाशक केवलज्ञान को प्राप्त हो गए हो, ससार के जीवो के रक्षक हो, काम क्रोघादि शत्रु समूह के लिए भयकर हो तथा आपके समान कोई अन्य बलवान नही है।"
- (ऋग्वेद २-३३-१०) "भाव यज्ञ (आत्मस्वरूप) को प्रकट करने वाले, इस संसार के सब जीवो को सब प्रकार से यथार्थ रूप से कहकर जो सर्वज्ञ नेमिनाथ स्वामी प्रकट करते हैं, जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा पुष्ट होती है, उन नेमिनाथ तीर्थंकर
४३