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जैन धर्म की प्राचीनता
जैन धर्म के सम्बन्ध मे कुछ व्यक्तियो के मन में यह भ्रम बैठा हुआ है कि जैन धर्म अपेक्षाकृत एक नवीन धर्म है और भगवान महावीर इसके सस्थापक थे। परन्तु यह बात तथ्यो के विपरीत है। यदि ये महानुभाव निम्नलिखित प्रमाणो पर गम्भीरतापूर्वक विचार करेंगे तो उनको अपनी भूल का ज्ञान हो जायेगा और वे वास्तविकता को जान जायेगे।
तथ्य यह है कि इस युग मे तीर्थंकर ऋषभनाथ जैन धर्म के सस्थापक थे, जिनका समय अब से करोडो वर्ष पूर्व था। उनके पश्चात् शत-सहस्रो वर्षों के बीच मे तेईस तीर्थकर और हुए, जिन्होने अपने-अपने समय मे जैन धर्म का प्रचार किया। इन्ही तीर्थकरो मे भगवान महावीर अन्तिम अर्थात् चौबीसवे तीर्थकर थे। भगवान महावीर ने कोई नया धर्म नही चलाया, अपितु उसी जैन धर्म का पुनरोद्धार किया था, जो भगवान ऋषभनाथ के समय से चला आ रहा था। आज सभी इतिहासकार तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ को एक ऐतिहासिक महापुरुष मानते है और वे एक मत से यह भी स्वीकार करते हैं कि भ० महावीर के जन्म से पहले भी भारतवर्ष में जैन धर्म प्रचलित था। इस तथ्य के पक्ष मे सबसे प्रबल प्रमाण बौद्धग्रथ 'मज्झिम निकाय महासीहनाद सुत्त १२' से मिलता
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