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प्राप्त कर लिया तब तो वे उपदेश देने के लिए नगरो व देहातो मे ही विहार करते थे।
हा भगवान महावीर सासारिक दुखो को देख कर व्याकुल अवश्य थे। वे जानते थे कि यह ससार दुःखो की खान है। इन्ही दुःखों से व्याकुल होकर वे उन दुःखों के कारण, उन दुखों को दूर करने के उपाय और शाश्वत सुख प्राप्त करने का मार्ग ढूढने निकले थे। वे उत्तरदायित्वो से भागे नही थे किन्तु उन्होंने तो एक महान उत्तरदायित्व को वहन किया था और फिर अपने सम्यक् पुरुषार्थ से उस उत्तरदायित्व को पूरा करने मे वे सफल भी हुए थे। उन्होने सच्चे, निर्वाध और अनन्त सुख का मार्ग प्राप्त कर लिया था। उन्होंने स्वय उस मार्ग पर चलकर अनन्त सुख प्राप्त किया और ससार को भी वह मार्ग दिखला गये। पलायन करने वाला व्यक्ति आराम और आलस्य का जीवन बिताना पसन्द करता है, परन्तु भगवान महावीर ने अपने महान उद्देश्य की सिद्धि के लिये बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की थी।
एक बात और भी है। भगवान महावीर सांसारिक दुखो से भयभीत अवश्य थे परन्तु वे अत्यन्त निर्भय थे। यही कारण है कि उन्होने न तो कोई शस्त्र धारण किया
और न कभी अपने साथ कोई रक्षक ही रक्खा। इसके विपरीत वे तो अत्यन्त अपरिग्रही (दिगम्बर) होकर निर्जन और घनघोर बनो में अपनी साधना मे लीन रहते थे। उन्होने तो सर्वोच्च त्याग का आदर्श प्रस्तुत किया था। अतएव इन सब वास्तविकताओ को दृष्टि में रखते हुए भगवान महावीर के ऊपर पलायनवादी होने का आक्षेप करना संकुचित दृष्टि का परिचायक ही समझा जायेगा।