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उनको पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया तो उन्होंने ससार को बतलाया कि कोई भी प्राणी केवल वर्तमान में दिखने वाला स्थूल शरीर ही नही है, वास्तविक प्राणी तो उसकी आत्मा है । इस आत्मा का अस्तित्व अनादि काल से है और अनन्त काल तक रहेगा । जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रों को उतार कर नये वस्त्र धारण कर लेते हैं उसी प्रकार यह आत्मा एक शरीर त्याग कर अपने कर्मों के अनुसार नये-नये शरीर धारण करती रहती है, और अपने कर्मों के अनुसार ही वह सुख व दुख भोगती रहती है । यह आवश्यक नही है कि इस जन्म मे हम जो भी अच्छे व बुरे कार्य कर रहे हैं उनका फल हमको इसी जन्म मे मिल जाये । वह फल हमको इसी जन्म मे भी मिल सकता है और अगले जन्मो मे भी मिल सकता है । इसी प्रकार पिछले जन्मो मे हमने जो अच्छे व बुरे कार्य किये हैं उनका फल हमको सभवतः पिछले जन्मो मे भी मिल चुका है, इस जन्म में भी मिल सकता है और अगले जन्मो मे भी मिल सकता है । यह ससार-चक्र अनादि काल से इसी प्रकार चलता आया है और भविष्य मे भी तब तक इसी प्रकार चलता रहेगा, जब तक हम अपने पुरुषार्थ से अपने समस्त कर्मों को नष्ट नही कर देते । यही पुनर्जन्म का सिद्धान्त है । मुक्ति का द्वार सब जीवों के लिए खुला है
भगवान महावीर ने बतलाया कि जब तक इस जीव के साथ अच्छे व बुरे कर्मों का बन्धन लगा हुआ है, तब तक यह जीव इस संसार में जन्म मरण करता हुआ सुख व दुःख भोगता रहेगा | परन्तु जब यह जीव अपने सत्पुरुपार्थं अर्थात् अहिंसा, सयम, तप, त्याग, ध्यान, आदि के द्वारा इन कर्मों के बन्धन को छिन्न-भिन्न कर देगा, तभी
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