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के बजाये यदि हम इन इन्द्रियों की वासनामो के दास बन गये तो हमारे अहिंसा व परिग्रह-परिमाण आदि व्रत सब व्यर्थ हो जायेंगे और हम चरित्रहीन हो जायेंगे। एक चरित्रहीन व्यक्ति उस नदी के समान होता है जो अपने किनारो को तोड़ कर बहने लगती है और सारे क्षेत्र के लिये तबाही व बरबादी का कारण बन जाती है। ऐसे ही चरित्रहीन व्यक्ति समाज के लिये बोझ बन जाते हैं। दूसरो के लिये दुख का कारण बनने के साथ-साथ वे अपना स्वास्थ्य नष्ट कर लेते हैं और स्वय भी जीवन पर्यन्त दुःखी ही रहते हैं। इसके विपरीत एक सयमी व्यक्ति स्वय भी सुखी व स्वस्थ रहता है तथा समाज मे भी आदर पाता है।
इसी प्रकार हमें कुछ तप करने का अभ्यास भी करते रहना चाहिये । तप करने का अर्थ केवल शरीर को कष्ट देना ही नहीं है अपितु शरीर को बुरी परिस्थितियो मे भी अभ्यस्त रखना है । जिस प्रकार एक सैनिक शान्ति के दिनो में भी नियमित जीवन व्यतीत करता है और प्रति वर्ष कुछ समय के लिये युद्ध जैसी परिस्थितियो में भी रहता है, जिससे कि वास्तविक युद्ध के लिये वह सदैव तैयार रहे, इसी प्रकार तप करते रहने से भी व्यक्ति अपने शरीर को अपने वश मे रख सकता है और प्रतिकूल परिस्थितियो मे भी समतापूर्वक जीवन व्यतीत करने का अभ्यस्त हो सकता है, जिससे कि कठिनाई के समय वह अपने लक्ष्य से विचलित न हो जाये । सयम पालने और तप करने से हमारे पूर्व मे किये हुए पापों का नाश भी होता है।
पुनर्जन्म : भगवान महावीर ने देखा कि संसार में