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( समस्त जीवों के सुखी व धर्मनिष्ठ होने की भावना)
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सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे, वैर, पाप, अभिमान छोडकर, नित्य नये मगल गावे । घर - घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावे, ज्ञानचरित उन्नत कर अपना, मनुज-जन्मफल सब पावे ||६|| ईत भीत व्यापे नही जग मे, वृष्टि समय पर हुआ करे, धर्मनिष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे । रोग, मरी, दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे, परम अहिसा धर्म जगत में, फैल सर्व हित किया करे ॥ १०॥ फैले प्रेम परस्पर जग मे, मोह दूर पर रहा करे, अप्रिय कटुक कठोर शब्द नही, कोई मुख से कहा करे । बनकर सब 'युगवीर' हृदय से देशोन्नति रत रहा करें, वस्तुस्वरूप विचार खुशी से, सब दु ख सकट सहा करे ॥ ११ ॥
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