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योगदान करते हैं वे पापी हैं, दुष्ट हैं और रौरव नरक में जाकर महान् दुख उठाते है।"
"मैं मानता हू, जो व्यक्ति दूसरो का मास खाता है वह सचमुच अपने बेटे का मास खाता है।"
"मास खाने से कोढ जैसे अनेको भयकर रोग फूट पडते हैं। शरीर मे खतरनाक कोडे व जन्तु पैदा हो जाते हैं, अत मास भक्षण का त्याग करे।"
"हे महामते । मै यह आज्ञा कर चुका है कि पूर्व ऋषिप्रणीत भोजन मे चावल, जौ, गेहू, मूग, उडद, घी, तेल, दूध, शक्कर, खाण्ड, मिश्री आदि लेना ही योग्य है।"
"मैने किसी भी सूत्र मे मास को सेवन योग्य नही कहा है और न खाने की ही आज्ञा दी है, न उसे उत्तम भोजन कहा है।"
विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत मे लिखा है -
"हे अर्जुन | जो शुभ-फल प्राणियो पर दया करने से प्राप्त होता है, वह फल न तो वेदो से, न समस्त यज्ञो के करने से और न किसी तीर्थवन्दन अथवा स्नान से हो सकता है।"
___-महाभारत, शान्ति पर्व, प्रथम पर्व __ "ये लोग जो तरह-तरह के अमृत से भरे शाकाहारी उत्तम पदार्थों को छोडकर मास आदि घृणित पदार्थ खाते है वे सचमुच राक्षस की तरह दिखाई देते हैं।"
"जो दूसरो के मास से अपना मास बढाना चाहता है उस निर्दयी से बढकर कोई क्षुद्र व्यक्ति नही है।"
-महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय ११६ मनुस्मृति मे लिखा है -
"मारने की सलाह देने वाला, मरे प्राणियो के शरीर १६२