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अहिंसा व शाकाहार के सम्बन्ध में धर्मशास्त्रों में लिखे हुए एवं महापुरुषों द्वारा कहे हुए विचार
"मैं मर जाना पसन्द करूंगा, परन्तु मास कभी नहीं खाऊगा । पशुओ का मास खाना घोर नैतिक पतन है ।" "चाहे कुछ भी हो, धर्म हमे अण्डे, मछली, मास खाने की आज्ञा बिलकुल नही देता ।"
"मैं मास नही खाऊगा, शराब नही पीऊगा, पर-स्त्री सग नही करूगा ।"
- महात्मा गाधी महात्मा बुद्ध स्वयं लकावतार सूत्र में मास भक्षण परिवर्ती नामक आठवे अध्याय मे कहते है।
"यह मास दुर्गन्धमय है । मलेच्छो द्वारा सेवित है । आर्यजनो द्वारा त्याज्य है । आर्यपुरुष मास और खून का आहार नही करते, क्योकि यह अभक्ष्य और घृणा से भरा है ।"
"मास - भक्षण से साधुपना अथवा ब्राह्मणपना नष्ट हो जाता है । मासाहारी दूसरे के प्राणों को जबरदस्ती लेने के कारण डाकू हैं ।"
"जो प्राणी लोभ के वशीभूत होकर दूसरे के प्राणो को हरते है अथवा मास की पैदावार बढाने से धन का
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