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किलो मात्रा लें तो काड मछली मे चार ग्रेन, यलीस मछली में छह ग्रेन, गाय की खाल मे सात ग्रेन, गाय की पसली मे आठ प्रेन, सूबर की कमर तथा रान मे आठ ग्रेन, तुर्की मुर्गी मे आठ ग्रेन, चूजे मे नौ ग्रेन, गाय की पीठ तथा पीछे के अंग में नौ ग्रेन, गाय के भुने मास मे चौदह ग्रेन, गाय के यकृत में उन्नीस ग्रेन और मास के रस मे पचास प्रेन यह भयकर विष पाया जाता है। दालो मे व वनस्पतियो मे इस विष की मात्रा बहुत ही कम अर्थात् न के बराबर ही होती है। पनीर, दूध से बने पदार्थों, चावल व गोभी आदि मे यूरिक एसिड बिलकुल भी नही पाया जाता।"
यही डाक्टर आगे लिखते हैं, "जब यह विष मनुष्य के रक्त में मिल जाता है तब यह विष दिमागी बीमारिया, हिस्टीरिया, सस्ती, नीद का अधिक आना, सास रोग, जिगर को खराबी, अजीर्ण रोग, शरीर में रक्त की कमी आदि बहुत सी बीमारियो को पैदा करता है। यह विष जब किसी गाठ या जोड मे रुक जाता है तो बात रोग, गठिया बाय, नाक और कलेजे की दाह, पेट के विभिन्न रोग, शरीर के विभिन्न दर्द, मलेरिया, निमोनिया, इन्फ्लुएजा और क्षय रोग उत्पन्न करता है।"
डाक्टर हैग और आगे लिखते हैं, "मास मे कैलशियम की बहुत कमी होती है और कार्बोहाइड्रेट्स के नितान्त अभाव के कारण मास पेट मे जाकर सडता है और अण्डे की तरह यह भी सडाध पैदा करने वाले कीटाणुओ को बढावा देता है, इससे गैस की भयंकर बीमारिया पैदा हो जाती हैं।"
डाक्टर जोशिया आल्डफील्ड डी० सी०, एम० ए०,
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