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फिर भी जो व्यक्ति दूध का त्याग कर सकते हैं उन्हे उसका त्याग अवश्य कर देना चाहिए। हमको ऐसे दूध का प्रयोग तो करना ही नही चाहिए जो पशुओ को कष्ट देकर और उनके बच्चो को भूखा रखकर प्राप्त किया गया हो ।
(८) कुछ व्यक्ति कहते है कि भगवान् महावीर के समय मे जैन मुनि भी मासाहार करते थे । इस बात के समर्थन मे वे किन्ही द्वेषी लेखको की लिखी पुस्तको से दोचार उद्धरण भी देते है ।
इन व्यक्तियो का यह कहना केवल भ्रम है और एक गलत बात को सही ठहराने का कुप्रयास है । यह बात समझ मे नही आती कि जो जैन मुनि सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की भी रक्षा करने का प्रयत्न करते थे और उनकी हत्या करने को पाप बतलाते थे, वे मासाहार किस प्रकार कर सकते थे ? एक ओर तो वे अहिसा को परम धर्म बतलाते और दूसरी ओर हिंसा द्वारा प्राप्त मास का भक्षण करते तो उनके उपदेश का प्रभाव जन साधारण पर कैसे पड सकता था ? यह बात समझ मे आने वाली नही है । बडे-बडे इतिहासज्ञो ने यह स्वीकार किया है कि जैन मुनियो के उपदेशो और उनके तदनुसार आचरण के कारण ही भारत मे अहिसा धर्म का इतना अधिक प्रचलन हुआ और मासाहार मे कमी हुई |
जैन मुनियो द्वारा मासाहार न करने के समर्थन मे हम एक बार फिर बौद्ध ग्रन्थ 'मज्झिम निकाय महासोहनाद सुत्त १२' का हवाला देते हैं, जहा पर महात्मा बुद्ध ने कहा है, ( जब वह जैन मुनि की अवस्था मे थे तब ) मछली, न मास, न मदिरा, न सडा माड खाया "मैं एक बूद पानी पर भी दयालु रहता था । क्षुद्र जीव की हिसा
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