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________________ भगवान महावीर के मुख्य सिद्धान्त हमारे दुखों के मूल कारण तथा उनको दूर करने के उपाय भगवान महावीर ने देखा कि ससार का प्रत्येक जीव दु.खी है, कोई किसी एक कारण से, तो कोई किसी दूसरे कारण से । जब उनको पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया तब उन्होंने बतलाया कि ससार के जीवो के दु.खो का मूल कारण इन जीवो का अनादि काल से चला आ रहा उनका अपना अज्ञान ही है। अपनी इस अज्ञानता के कारण, प्रत्येक जीव विभिन्न जन्मों मे उसको जो भी शरीर मिलता रहा है, उसी को अपना सब कुछ मानता रहा है। इसी अज्ञानता के कारण यह जीव इस शरीर के सुख को वास्तविक सुख और इस शरीर के दुःख को वास्तविक दुःख मानता रहा है। जो भी अन्य जीव उसको शारीरिक सुख प्राप्त कराने में सहायक होता है, यह जीव उसको ही अपने सुख का कारण मानकर उसको अपना मित्र-अपना हितैषी-मानता रहा है, और उससे राग-प्रीति-करता रहा है तथा जो भी अन्य जीव उसको शारीरिक सुख प्राप्त करने मे बाधक होता है और उसको शारीरिक दुख देता है, उसको यह जीव, अपने दुख का कारण मानकर, अपना शत्रु मानता रहा है और उससे द्वेष-नफरत करता रहा है। इस प्रकार यह जीव अपनी इस अज्ञानता और इन राग-द्वेष मूलक हिंसा की भावनाओ के कारण ही अनादि काल से बुरे कर्मों का सचय करता रहा है, जिनके फलस्वरूप यह जीव अनादि काल से ही दुख भोगता रहा है। किन्तु वास्तविकता यह है कि जिस शरीर को अपना
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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