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अनादिकाल से ही मनुष्य किसी-न-किसी कारण को लेकर आपस मे युद्ध करते आये है। इन युद्धो मे जन-धन की कितनी हानि होती है, इसकी कोई सीमा नहीं है । बीसवी शताब्दी के प्रथम अर्द्धशतक मे ससार ने दो महायुद्ध देखे हैं। छोटे-मोटे युद्ध तो निरन्तर चलते ही रहते हैं। इन युद्धो मे कितनो जन-धन की हानि हुई, इसका लेखा-जोखा लगाना असम्भव है। इतनी हानि और इतनी हिसा करने के पश्चात् भी इन युद्धरत राष्ट्रो को क्या मिला ? क्या इन युद्धो से उन राष्ट्रो की या ससार की कोई समस्या सुलझी ? तथ्य तो यह है कि इन युद्धो ने नई-नई समस्याए पैदा कर दी। इनके कारण अगणित स्त्रिया विधवा तथा बालक अनाथ हो गये। लाखो व्यक्ति विकलाग हो गये। लाखो परिवार शरणार्थी बन कर जगह-जगह की ठोकरे खा रहे है । विषैली गैसो के कारण सारा वायुमडल दूषित हो गया है। नये-नये रोग पैदा हो गये है। और फिर नैतिकता का जो ह्रास हुआ है वह अलग । इन युद्धो के ऐसे भयानक परिणाम देखकर ही League of Nations
और United Nations Organisation का जन्म हुआ, जिससे राष्ट्रो के आपसी झगडे, युद्ध के माध्यम से नहीं, अपितु आपसी वार्तालाप द्वारा सुलझाये जा सके। आज भी ससार के नेता पुकार-पुकार कर कह रहे है कि युद्ध बन्द हो जाने चाहिए और शस्त्रो के उत्पादन पर पाबन्दी लगनी चाहिए। लेकिन फिर भी एक दूसरे पर अविश्वास के कारण प्रत्येक राष्ट्र अपनी सेना व शस्त्रो पर अपनी क्षमता से अधिक धन व्यय कर रहा है। सामूहिक रूप से मनुष्यो की हत्या करने के लिये नित्य नये नये घातक शस्त्रो का आविष्कार हो रहा है। अर्थ-शास्त्रियो ने हिसाब