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पशुओ को पालने में कोई विशेष आर्थिक हानि नही होती।
एक बात और भी है। क्या यह हमारी कृतघ्नता नही होगी कि जो पशु अपने जीवन भर हमे दूध देते है, हमारी फसल के लिये खाद देते है, हमारे खेतो मे हल चलाते है, हमारा बोझा ढोते हैं तथा मरने के पश्चात् भी हमे अपना चमडा और हड्डिया आदि देते है, उन पशुओ की, बूढा व अशक्त होने पर, हम हत्या कर दे ? ___ 'इन बेकार पशु-पक्षियो का बध करके ही मनुष्य की भलाई की जा सकती है' यह तर्क देकर जो आज इन जीवो की हत्या की जा रही है वही तर्क देकर कल मनुष्यो की भी हत्या करना आरम्भ हो जायेगा। फिर हम अपने बूढे व अशक्त माता-पिताओ को भी बेकार समझ कर उनका बध करने लगेगे। इस स्वार्थवृत्ति का अन्त कहा होगा?
(७) कुछ व्यक्ति यह तर्क देते हैं कि मनुष्य जाति की उन्नति के लिये युद्ध अनिवार्य है। युद्धो मे प्रयोग के लिए मनुष्य नित्यप्रति नये-नये अस्त्र-शस्त्र बनाता है और अन्य उपयोगी आविष्कार करता है। यदि युद्ध न हो तो मनुष्य का मस्तिष्क कुण्ठित हो जाये और वह शत्रु को नष्ट करने और अपनी रक्षा करने के लिए नये-नये साधनो का आविष्कार करना छोड दे। युद्ध मे रक्तपात होता है और उस रक्तपात के लिए अभ्यस्त होने के लिए इन पशु-पक्षियो का बध करते रहना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त वे यह भी तर्क देते है कि बिना रक्तपात के हम अपनी, अपने आश्रितो की और अपने देश की रक्षा भी नही कर सकते। उनकी मान्यता है कि लडाकू व हिसक जातिया सदैव स्वाधीन रहती है और उन्नति भी करती है।
परन्तु इन व्यक्तियो के ये विचार ठीक नहीं हैं।
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