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प्राचीन जैन स्मारक |
विजयनगर राजाओंने १४, १५, १६वीं शताब्दी में इस मंदिरको भूमि दान की है।
यहांके शिलालेख ऐतिहासिक हैं ।
पिल्लपलद्दम वह स्थान है जहां कपड़ा बुननेवाले रहते हैं । इस मंदिर की मूर्तिको त्रिलोकनाथस्वामी कहते हैं। यहां जो शिलालेख हैं उनका भाव नीचे प्रकार है
(१) दो भक्त वामरचरियर और पुष्पनाथ जो श्री मल्लिषेण मुनिके शिष्य थे एक वृक्षके नीचे ध्यान कर रहे थे । यह वृक्ष उस स्थान के पीछे है जहां अब मूर्ति विराजमान है । एक जैन व्यंतर देव इन दोनोंके सामने उपस्थित हुआ और अपनी प्रसन्नता प्रगट की । इन दोनों भक्तोंने इस वर्तमान मंदिरजीको बनबाया तथा पुजारियोंके लिये दो ठहरनेके स्थान वृक्षके नीचे बनवाए । इस जैन कांचीके त्रिलोकनाथस्वामीकी पूजाके लिये सर्वम नियमके तौरपर २००० गुली भूमि तिरुपरुत्तिकुनरममें दान की गई । (२) पुप्प मास थथु वर्षमें मूर्तियों की पूजाके लिये चिन्नपा आमम् नामका ग्राम जो मुशखकके बाहर है, दिया गया । (३) कोलथुंग चोलम्के २१ में वर्ष के राज्यमें जब यह पांड्य मदुराका स्वामी था, एक भक्त मोंडियन किलनने जिन मूर्तिकी पूजा की और ऐसी गाढ़ भक्ति की कि एक जैन व्यंतर सामने आगया और कहा कि जो तू चाहे सो मांग परन्तु उसने कुछ इच्छा न प्रगट की तब उसने येीरकोत्तमके अम्बी ग्राममें २० वली भूमि तथा कलियर कत्तमके तिरुपरुत्तिकुनरममें २० बली भूमि मूर्तिकी पूजा व अन्य व्ययके लिये पुजारीको अर्पण की ।