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५४] प्राचीन जैन स्मारक । योंका दान लिखा है । यह किसी जैनमंदिरसे यहां लाया गया है जिसका पता अब नहीं चलता है ।
मदरास एपिग्राफी दफ्तरमें इस जिलेके जैन नकशे व फोटो नीचे प्रकार हैं(१) सी १५ रत्नागिरिके जैन मंदिरका उत्तरीय पूर्वीय भाग । (२), १६ , , पूर्वीय भाग ।। (३) ,, १७ ,पश्चिम पहाडीपर एक चट्टानपर अंकित जैनमूर्ति।
नीचे लिखा वर्णन एपिग्राफी रिपोटे सन् १९१६-१७से लिया।
(१०) कोट्ट शिवपुर-ता. मदाक्षिरा-इस ग्रामके द्वारके मंडपके स्तंभपर एक लेख है कि राजा इरनालकी रानी अल्पद्रीने इस जैन दानशालाका जीर्णोद्धार कराया। यह कुंदकुंदाचार्यान्वयी करगणके मुनियोंकी श्राविका शिष्या थी। वहीं पर दूसरा स्तंभ है उसपर लेख है । (नं० २१) कि इस वसती या जैन मंदिरको काणूरगणके पुष्पनंदी आचार्यके समय बनाया गया था ।
(११) पट शिवपुरम ता० मदाक्षिरा-इस ग्रामके दक्षिणद्वारपर एक स्तंभपर लेख (नं० २८)-पश्चिमीय चालुक्य राना त्रिभुवनमल्ल वीर सोमेश्वर देवके समय शाका ११०७ का है। जब इस राजाके आधीन त्रिभुवनमल्ल भोगदेव चोल महाराज हेजिरानगरपर राज्य कर रहे थे। यह जैन मंदिर बनाया गया तब श्री पद्मप्रभ मलधारीदेव और उनके गुरु वीरनंदि सिद्धांतचक्र. वर्ती विद्यमान थे। ____स० नोट-श्री कुंदकुंदाचार्यरुत नियमसार ग्रन्थकी संस्कृत वृत्ति श्री पद्मप्रभ मलधारी देवने रची है-यह वही मालूम होते हैं।