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मदरास प्रान्तव मैमूर।
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योंके सामने एक भीत बनादी है और पूजा भी करते हैं। यह स्थान पर्वतभरमें सबसे बढ़िया है जहांसे चहुंओर मनोहर दृश्य दिखलाई पड़ता है। प्राचीन जैनलोगोंकी दृष्टि ऐसे स्थानोंके तलाश करने में बहुत प्रशंसनीय थी। यह स्थान रायगुग किलेके झोपड़ेके समान है।
(२) कोथुरू -नगर ता. कुडलिगी । यहांसे दक्षिण पश्चिम १२मील । यह लिंगायतोंका केन्द्र है । उनके गुरु वासप्पाकी यहीं मृत्यु हुई है। उसकी समाधि बनी है, कनड़ी भाषामें एक कथा है कि वासपा यहां जब आया तब यह जैनियोंका दृढ़ स्थान था। इसने जैनियों को बादमें जीत लिया, उनको लिंगायत बनाया और नियोंके मुख्य मंदिरमें लिंग स्थापित कर दिया। इस मंदिरको अब मूरुकल्लु मठ अर्थात् तीन पाषाण मठ कहते हैं।
इसके तीन मंदिरोंमेंसे हरएककी भुनाएं तीन बड़े बड़े पाषाणोंसे बनी हैं। यह वास्तवमें जैन मंदिरोंका एक बढ़िया नमूना है। यहां तीन भिन्न२ मंदिर थे-उत्तर, पूर्व और दक्षिणको। मध्यमें हाता था जिसमें अब मूर्ति विराजित है। इन मंदिरोंपर शिषर चौकोर पाषाणके हैं जो जैन मंदिरोंके समान हैं । मध्य हातेमें एक शिलालेख है जो आधा पृथ्वीमें गड़ा है। किलेके भीतर चूड़ामणिशास्त्रीके मकानकी बाहरी भीतपर ३ शिलालेख और हैं।
(३) रायगुग नगर-तारायद्रुग-यहां एक पहाड़ी है, नीचे नगर है । इस पर्वतकी सबसे ऊंची चोटी २७२७ फुट है । पर्वत पर किला है व बहुतसे मंदिर हैं। प्राचीन राजाओंके मकानोंके ध्वंश हैं, एक जैन मंदिर है तथा राससिद्धकी झोपड़ीके नामसे प्रसिद्ध स्थानमें चट्टानके मुखपर कुछ जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां अंकित