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प्राचीन जैन स्मारक |
ई० तक राज्य किया था। इसीके पास दो पाषाण और हैं उनमें से एकपर दूसरी कायोत्सर्ग जैन मूर्ति है उसके पीछे ऊपर को सर्पका फण है। दूसरेपर भी ऐसी ही मूर्ति है । इन दोनोंके ऊपर एक गोल तीसरा पाषाण है जिसमें एक पद्मासन जैन मूर्ति है ।
मदरास पुरातत्व भागकी रिपोर्ट जिसमें सन् १९१९ तक के फोटोका वर्णन है उनमें रामतीर्थ के फोटो नीचे प्रकार हैं
(१) नं० सी १२, पद्मासन जैन मूर्ति और आसन गुरुभक्तकुंडके ऊपर |
(२) नं ० सी १३, बोड़ीकोंडके ३ आलोंका दिखाव ईंटके मंदिर सहित ।
(३) नं० सी १४, दुर्गा कुंडकी कायोत्सर्ग मूर्तिका दिखाव फण सहित ।
सन् १९१८ की एपिगुफीकी रिपोर्टसे विदित हुआ-नं० ८३१ - लेख रामतीर्थकी दुर्गापंच गुफाकी भीतपर। पूर्वीय चालुक्य राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्द्धन यहां आया था ।
सन् १९०५ के नं० ३०२ लेखकी फिर नकल ली गई जिससे प्रगट हुआ कि राजमार्तंड व मुम्मदी भीमपदधारी राना विमलादिस बड़ी भक्तिसे रामकुंडके दर्शनको आया । राजाके गुरु देशीयगण के मुनि त्रिकालयोगी सिद्धांत देव आचार्य थे । इससे यह जैनधर्मका माननेवाला सिद्ध होता है ।
नं० ८३२ गुरुभक्तकुंडपर खंडित जैन मूर्तिके आसन पर तेलगू में लेख है कि ओमार्मार्ग में चावड़ बोलुके पुत्र प्रेमी सेठीने मूर्ति स्थापित की ।
Archeological survey r port of India.