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प्राचीन जैन स्मारक |
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द्वार्य, इन्द्रनंदि संहिता शास्त्रकर्ता, वसंतकीर्ति, विशालकीर्ति, शुभकीर्तिदेव, पद्मनंदि सुनि, माघनंदि, सिंहनंदि, चंद्रप्रभ मुनि, वसुनंदी, माघचंद्र, वीरनंदि, धनंजय, वादिराज, धर्मभूषण गुरु जिनकी पूजा बर्द्धमान मुनि वल्लभके मुख्य शिष्य देवराय राजाने की थी । विद्यानंदिका पुत्र सिंहकीर्ति व्रतींद्र, मेरुनंदि, बर्द्धमान, प्रभाचंद्र, अमरकीर्ति, विशालकीर्ति, नेमिचन्द्र भ०, सिंहकीर्ति मुनि हुए । यह अश्वपति के समय में प्रसिद्ध हुए । यह बड़े नैय्यायिक थे । इन्होंने दिहली के बादशाह महमूद सूरित्राणकी सभा में जिनके आधीन बंगाल देश था बौद्ध व अन्यों को बाद में हराया । बलात्कारगणी विशालकीर्ति जिसकी प्रतिष्ठा सिकन्दर सूरिताणने की थी व जिसने विद्यानगरके वीरपक्ष रायकी सभा में वादियों को जीता था देवप्पा दंडनायके नगर आरगनें उसने जैनधर्मका चमत्कार बताया था । विशालकीर्तिके पुत्र विद्यानंद स्वामी थे जिनकी प्रतिष्ठा साल्य महिराने की थी । स्वामी विवानंदिके पुत्र भारती और मललोचन थे । इनको देवेन्द्रकीर्तिक कहते थे। इनकी सेवा कृष्णराय के भाई अच्युतरावने की थी । विधानगिरिके कृष्णरायकी सभा में विद्यानंदिने विजय पाई और सुदेशभवन व्याख्यान रचा । विद्यानंदिके साथी नेमिचन्द्र सुनीं थे । इन्होंने श्री पार्श्वनाथ वस्ती जो पोम्बूच्छ है उसके तीन खन बनवाए व प्रतिठा करी । उनके पुत्र विशारकोर्ति व साथी अमरकीर्ति थे । देवेन्द्रकीर्तिकी पूजा राजा पांड्य और भैरव ओडयरके वंशवालोंने की थी । देवेन्द्रकी र्तिके पुत्र सुखी वा बर्द्धमान मुनिने इन काव्योंको रचा |
(८) नं० ४० सन् १६२ - नादात के मुखमंड