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मदरास व मैसूर प्रान्त |
[ २७५ हुत्तरंग बुटक राज्य कर रहे थे, तब कुंद ० के भ० गुणसागर के शि० म० गुणचन्द्रके शिष्य मौनी भट्टारकने समाधिमरण किया तब अभयनंदि पंडित भट्टारकके शिष्य किरियामौनी भ०के उपदेशसे उनका स्मारक स्थापित हुआ I
(९) नं० १२४ सन ११३३, वस्तीहल्ली में पार्श्वनाथजीके बाहरी भीतपर एक पाषाण ।
महाराज विष्णुवर्द्धनके राज्यमें मुख्य दंडनायक कौंडिन्यगोत्री गंगराजा थे जो एची राजा और पाचाम्बिकेके पुत्र, कर्णाट ब्राह्मणोंके मुखिया, दानमें श्रेयांश जैनसिद्धांत में रत्न, वीरभट्टका मुकुटाधिश; इसने बहुतसे जिन मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराया । राजा गंग कहता है इस जगतमें सात नर्क ये हैं (१) असत्यवाद, (२) युद्धमें भय ( ३ ) परस्त्री रति, (४) शरणागतको न रखना, (५) याचकोंको तृप्त न करना, (६) आधीनोंका साग, (७) स्वामीविद्रोह । गंगराजा व देवी नागलसे वोप्पा चामृप पुत्र हुए। इसके गुरु कुन्द० मलधारी के शिष्य शुभचन्द्रदेव थे । गंगमंडलके आचार्य प्रभाचन्द्रदेव सिद्धांतिक थे । इस सुन्दर जिनमंदिरको वोप्पादेवने दोरसमुद्रमैं जो शाहीनगरोंमें सबसे बड़ा था, अपने पिता गंगरा - जाकी स्मृति में बनवाया और श्री पार्श्वनाथजीको स्थापित किया । प्रतिष्ठा नयकीर्ति सिद्धांत चक्रवर्ती द्वारा हुई। यह मंदिर द्रोहघरट्ट जिनालय मूलसंघी देशीगण पुस्तकगच्छ कुन्द० हनसगेवलि सम्बन्धी कहलाता था ।
प्रतिष्ठा के पीछे पुजारीलोग शेषाक्षत लेकर महाराज विष्णुवर्द्धनके पास दरबार में वंकापुर गए । उसी समय महाराजने मसन