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प्राचीन जैन स्मारक ।
जाने लिखा तथा होयसालाचारीके पुत्र वर्धमानाचारिने अंकित किया। नं० १२८ (४८) एरदुकट्टे वस्ती कहता है कि गंगराजाकी भार्या लक्ष्मीदेवीने सन् १९२१ में सल्लेखना या समाधिमरण किया ।
नं० ११७ (४३) चामुण्डराय वस्ती कहता है कि श्रीकुंदकुन्दान्वयी गुरु शुभचंद्रका समाधिमरण सन् १९२३ में हुआ । इस लेखमें गंगराजाकी बड़े भाईकी स्त्री जक्कनव्वेकी प्रशंसा है ।
नं० ३६७ जक्कीकट्टे सरोवर के तट चट्टानपर एक जैन मूर्तिके नीचे - यह कहता है कि सेनापति बोधदेवकी माता जक्कनव्वेने मोक्षतिलक व्रत पाला और यहां जैन प्रतिमा खुदवाई | नं० ३६८ कहता है कि उसने सरोवर बनवाया । नं० ४०० कहता है कि उसने साहाली में ऋषभदेवकी मूर्ति सन् ११२० के करीब स्थापित की |
नं० ३८४ (१४४) सन् १९३९, जिननाथपुरके एरगलर वस्तीपर । इसमें होयसालवंशावली विनयदित्यसे विष्णुवर्द्धनतक दी है तथा गंगराजाकी वंशावली बताई है । इसमें कथन है कि गंगराजाके बड़े भाई वम्मा सेनापतिकी भार्या बागनव्वे थी जो आचार्य भानुकीर्तिकी शिष्य श्राविका थी । इनका पुत्र एचा था जिसने कोपन, बेलगोला व अन्यस्थानोंमें जिन मंदिर बनवाए तथा समाधिमरण किया तब गंगराजाके ज्येष्ठ पुत्र बप्पा सेनापतिने एचाका स्मारक स्थिर किया और उसके बनाए मंदिरोंके जीर्णोद्धार के लिये श्री शुभचंद्रके शिष्य माधवाचार्यकी सेवामें भूमियें भेटकीं । नं० १२० (६६) चामुण्डराय वस्ती - नेमिनाथजीके सिंहपीठ पर - सन् ११३८ - गंगराजाके पुत्र एचनने त्रैलोक्य रंजन या बप्पन चैत्यालय बनवाया जिसकी मूर्ति अब चामुण्डराय वस्तीमें है ।