________________
२२८ ]
प्राचीन जैन स्मारक |
चट्टानपर लेख नं० ३२१ (१८१) है जिससे प्रगट है कि करीब १६७९ में हिरिसलीके गिरिगौड़के छोटे भाई रंगीयने मंदिर बनबाया | इस मंदिर के ऊपर श्रीपार्श्वनाथजी विराजमान है । श्रवणबेलगोला ग्रामके मन्दिर ।
(१) भंडारवस्ती - या चतुर्विंशतितीर्थंकर वस्ती । यह सबसे बड़ा जिनमंदिर २६६ से ७८ फुट है । भीतर एक लाईन में २४ तीर्थंकर कायोत्सर्ग तीन फुट ऊंचे विराजित हैं । तीन द्वार हैं 1 मध्य द्वारमें अच्छी नक्कासी है । बीचमें श्रीवासपूज्य हैं उनके दाहने ११ और बाएं १२ मूर्तियें हैं ।
इस वस्ती के सामने मानस्तम्भ है जो बहुत सुन्दर व उंचा है । इस भंडारवस्तीको होयसाल महाराज नरसिंह प्रथम ( सन् ११४१ - ११७३ ) के खजांची या भंडारी हुछाने बनवाया था । लेख नं० ३४५ (१३७) और ३४९ (१३८) से यह वस्ती सन् ११५९ में बनी थी | महाराज नरसिंहने इस मंदिरका नाम भव्य चूडामणि रक्खा व इसके लिये सबने ग्राम दान दिया ।
(२) अक्कन वस्ती - यह मंदिर होयसालोंके ढंगका बना है । इसमें कायोत्सर्ग मूर्ति श्रीपार्श्वनाथकी ५ फुट ऊंची है । इसके स्तम्भ बहुत अच्छे पालिश किये हुए हलेबिडके पास वस्तीहल्ली के श्रीपार्श्वनाथ मंदिरके समान हैं । शिखर बहुत सुन्दर है, उसमें एक आला है जिसमें पल्यंकासन जिन घमरेन्द्र सहित व कायोत्सर्ग जिन यक्ष यक्षिणी सहित विराजमान हैं। सामने की ओर शिखर में एक पल्यंकासन जिन हैं । श्रीपार्श्वनाथकी दाहनी तरफ सुन्दर लेख नं० ३२७ (१२४) है जिससे प्रगट है कि इस मंदिरको